________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ सूत्रम् // 1485 // प्रतिसेवा शक्रपुरन्दरादिवदिति, प्रज्ञापनेति गतम् // 8 // अथ वेदद्वारे नो अवेयए होज्जत्ति पुलाकबकुशप्रतिसेवाकुशीलानामुपशमक्षपक- 25 शतके श्रेण्योरभावात् // 9 // नो इत्थिवेयए त्ति स्त्रियाः पुलाकलब्धेरभावात् पुरिसनपुंसगवेयए त्ति पुरुषः सन् यो नपुंसकवेदको उद्देशकः६ वर्द्धितकत्वादिभावेन भवत्यसौ पुरुषनपुंसकवेदकः न स्वरूपेण नपुंसकवेदक इतियावत् // १०॥कसायकुसीले ण मित्यादि, | 752-755 उवसंतवेदए वा होज्जा खीणवेयए वा होज्जत्ति सूक्ष्मसम्परायगुणस्थानकंयावत् कषायकुशीलोभवति,स च प्रमत्ताप्रमत्तापूर्वकरणेषु / रागादिकल्पा: सयंमा: सवेदोऽनिवृत्तिबादरे तूपशान्तेषु क्षीणेषु वा वेदेष्ववेदः स्यात् सूक्ष्मसम्पराये चेति // 13 // नियंठे ण मित्यादौ उवसंतवेयए वा होज्जा खीणवेयए वा होज त्ति श्रेणिद्वये निर्गन्थत्वभावादिति। सिणाए ण मित्यादौ नो उवसंतवेयए होज्जा खीणवेयए होज त्ति क्षपकश्रेण्यामेव स्नातकत्वभावादिति // 16 // // 751 // रागद्वारे १९पुलाए णं भंते! किंसरागे होज्जा वीयरागे होजा?, गोयमा! सरागे होज्जा णो वीयरागे होज्जा, एवं जाव कसायकुसीले। 20 णियंठेणंभंते! किंसरागे होजा? पुच्छा, गोयमा! णोसरागे होज्जा वीयरागे होजा, 21 जइ वीयरागे होज्जा किं उवसंतकसायवीयरागे होजाखीणकसायवीयरागे वा होज्जा?, गोयमा! उवसंतकसायवी० वा होज्जाखीणकसायवी० वा होज्जा, सिणाए एवं चेव, नवरं णो उवसंतकसायवी० होजा खीणकसायवी० होजा ३॥सूत्रम् 752 // 22 पुलाए णं भंते! किं ठियकप्पे होजा?, अट्ठियकप्पे होजा? गोयमा! ठियकप्पे वा होज्जा अट्ठियकप्पे वा होज्जा, एवं जाव सिणाए। 23 पुलाएणं भंते! किं जिणकप्पे होजा थेरकप्पे होज्जा कप्पातीते होजा?,गोयमा! नो जिणकप्पे होजा थेरकप्पे होजा 3 // 1485 // णो कप्पातीते होज्जा / 24 बउसे णं पुच्छा, गोयमा! जिणकप्पे वा होजा थेरकप्पे वा होज्जा नो कप्पातीते होजा, एवं पडिसेवणाकुसीलेवि। 25 कसायकु० णं पुच्छा, गोयमा! जिणकप्पे वा होजा थेरकप्पे होजा कप्पातीते वा होजा। 26 नियंठेणं