________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1480 // 25 शतके उद्देशक:५ सूत्रम् 749-750 निगोदानाम् भंते! कतिविहा पन्नत्ता?, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा- सुहुमनिगोदा य बायरनिओगा य, एवं निओगा भाणियव्वा जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं॥सूत्रम् 749 // 30 कतिविहेणं भंते! णामे पन्नत्ते?, गोयमा! छव्विहे णामे पन्नत्ते, तंजहा-ओदइए जाव सन्निवाइए। से किं तं उदइए णामे?, उदइए णामे दुविहे प०, तं० उदए य उदयनिष्फन्ने य, एवं जहा सत्तरसमसए पढमे उद्देसए भावो तहेव इहवि, नवरं इमं नामणाणत्तं, सेसं तहेव जाव सन्निवाइए। सेवं भंते! 2 // सूत्रम् 750 // 25-5 // उद्देशक:६ सूत्रम् 751 कतिविहे त्यादि, निगोदा य त्ति अनन्तकायिकजीवशरीराणि निगोयजीवा य त्ति साधारणनामकर्मोदयवर्त्तिनो जीवाः, | निम्रन्थेष जहा जीवाभिगमे त्ति, अनेनेदं सूचितं 'सुहुमनिगोदा णं भंते! कतिविहा पन्नत्ता?, गोयमा! दुविहा पन्नत्ता, तंजहा पज्जत्तगा या भेदवेदौ अपज्जत्तगा ये त्यादि // 28 - 29 ॥॥७४९॥अनन्तरं निगोदा उक्तास्तेच जीवपुद्गलानां परिणामभेदाद्भवन्तीति परिणामभेदान् दर्शयन्नाह कतिविहे णं भंते! नामे इत्यादि, नमनं नामः परिणामो भाव इत्यनर्थान्तरम्, नवरं इमं नाणत्तं ति सप्तदशशते भावमाश्रित्येदं सूत्रमधीतमिह तु नामशब्दमाश्रित्यत्येतावान् विशेष इत्यर्थः ॥३०॥॥७५०॥पञ्चविंशतितमशते पञ्चमः॥ 25-5 // ॥पञ्चविंशशतके षष्ठोद्देशकः॥ पञ्चमोद्देशकान्तेनामभेद उक्तो नामभेदाच्च निर्ग्रन्थभेदाभवन्तीत्यतस्ते षष्ठेऽभिधीयन्त इत्यनेन सम्बन्धेनायातस्यास्यैतास्तिस्रो द्वारगाथा: पन्नवण 1 वेद 2 रागे 3 कप्प 4 चरित्त 5 पडिसेवणा 6 णाणे ७।तित्थे 8 लिंग ९सरीरे 10 खेत्ते 11 काल 12 गइ 13 संजम 14 // 1480 //