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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1442 // 25 शतके उद्देशकः३ सूत्रम् 730-733 आकाशश्रेणिगतिश्रेणिगणिपिटकाल्प बहुत्वानि 57 कतिणं भंते! सेढीओप०?, गोयमा! सत्त सेढीओपन्नत्ताओ, तं० उजुआयता एगओवंका दुहओवंका एगओखहा दुहओखहा चक्कवाला अद्धचक्कवाला॥५८ परमाणुपोग्गलाणं भंते! किं अणुसेढी गती पवत्तति विसेटिंगती प०?, गोयमा! अणु० गति प० नो वि० गती प०।५९ दुपएसियाणं भंते! खंधाणं अणु० गती प० वि० गती प० एवं चेव, एवं जाव अणंतपएसियाणं खं०।६० नेरइयाणं भंते! किं अणु० गती प० वि० गती प० एवं चेव, एवं जाव वेमा० ॥सूत्रम् 730 // 61 इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवि० केवतिया निरयावाससयसहस्सा पन्नत्ता?, गोयमा! तीसं निरयावाससयसहस्सा प०, एवं जहा पढमसते पंचमुद्देसगे जाव अणुत्तरविमाणत्ति ॥सूत्रम् 731 // 62 कइविहेणं भंते! गणिपिडएप०?,गोयमा! दुवालसंगे गणिपिडएपं० तं० आयारोजाव दिट्ठिवाओ, ६३से किंतं आयारो?, आयारेणंसमणाणं निगंथाणं आयारगो० एवं अंगपरूवणाभाणियव्वा जहा नंदीए, जाव सुत्तत्थोखलु पढमोबीओ निजुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओय निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे॥१॥सूत्रम् 732 // 64 एएसिणं भंते! नेरतियाणंजाव देवाणं सिद्धाण यपंचगतिसमासेणं कयरे 2? पुच्छा, गोयमा! अप्पाबहुयं जहा बहुवत्तव्वयाए अट्ठगइसमासअप्पाबहुगंच / 65 एएसिणंभंते! सइंदियाणं एगिदियाणं जाव अणिंदियाण य कयरे 2?, एयंपिजहा बहुवत्तव्वयाए तहेव ओहियं पयंभाणियव्वं, सकाइयअप्पाबहुगंतहेव ओहियं भा०॥६६ एएसिणं भंते! जीवाणं पोग्गलाणंजाव सव्वपज्जवाण यकयरे 2 जाव बहुवत्तव्वयाए, 67 एएसिणं भंते! जीवाणं आउयस्स कम्मस्स बंधगाणं अबंधगाणंजहा बहुवत्त० जाव आउयस्स कम्मस्स अबंधगा विसेसाहिया। सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 733 // 25-3 // सेढीओ णं भंते! किं साईयाओ इत्यादिप्रश्नः, इह च श्रेण्योऽविशेषितत्वाद्या लोके चालोके च तासां सर्वासां ग्रहणम्, // 1442 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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