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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1432 // 25 शतके उद्देशकः३ सूत्रम् 726 संस्थानावगाढः। पयरतंसे से दुविहे पं०, तं० ओयपए० य जुम्मपए० य, तत्थ णंजे से ओयपए से ज. तिपएसिए तिपएसोगाढे प०, उ० अणंतपए० असंखेजपएसोगाढे, तत्थ णंजे से जुम्मपए. से ज० छप्पए. छप्पएसोगाढे प० उ० अणंतपए० असंखेजपएसोगाढे प०, तत्थ णंजे से घणतंसे से दुविहे प०, तं० ओयपए० जुम्मपए० य, तत्थ णं जे से ओयपए से ज० पणतीसपए० पणतीसपएसोगाढे, उ० अणंतपएसिए तं चेव, तत्थ णंजे से जुम्मपए से ज० चउप्पए. चउप्पएसोगाढे प० उ० अणंतपए० तं चेव // 20 चउरंसे णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए? पुच्छा, गोयमा! चउरंसे सं० दुविहे प० भेदो जहेव वट्टस्स जाव तत्थ णं जे से ओयपए से ज. नवपए० नवपएसोगाढे प०, उ० अणंतपए० असंखेज्जपएसोगाढे प०, तत्थ णं जे से जुम्मपदेसिए से ज० चउपए० चउपएसोगाढे प० उ० अणंतपए० तं चेव तत्थ णंजे से घणचउरंसे से दुविहे प०, तं० ओयपए० जुम्मपए० , तत्थ णंजे से ओयपए से ज० सत्तावीसइपए० सत्तावीसतिपएसोगाढे, उ० अणंतपए० तहेव तत्थ जे से जुम्मपए० से ज० अट्ठपए० अट्ठपएसोगाढे प० उ० अणंतपए० तहेव // 21 आयए णं भंते! संठाणे कतिपदेसिए कतिपएसोगाढे प०? गोयमा! आयएणं सं० तिविहे प० तं० सेढिआयते पयरायते घणायते, तत्थ णं जे से सेढिआयते से दुविहे प०, तं० ओयपए० य जुम्मपए० य, तत्थ णं जे ओयप० से ज० तिपएसिए तिप०गाढे उ० अणंतपए तं चेव, तत्थ णं जे से जुम्मपएसे जह० दुपए. दुप०गाढे उ० अणंता तहेव तत्थ णं जे से पयरायते से दुविहे पं०, तं० ओयपए० य जुम्मपए० य, तत्थ णंजे से ओयपए से ज० पन्नरसपए० पन्नरसप०गाढे, उ० अणंत तहेव, तत्थ णंजे से जुम्मपए० से ज० छप्पए० छप्पएसोगाढे, उ० अणंत तहेव, तत्थ णंजे से घणायते से दुविहे पं० तं० ओयपए० जुम्मपए० , तत्थ णंजे से ओयपए० से ज० पणयालीसपए. पणयालीसपगाढे, उ० अणंत तहेव, तत्थ णं जे से जुम्मपए० से ज० बारसपएसिए बारसप०गाढे उ० अणंत तहेव // 22 परिमंडलेणं भंते! संठाणे कतिपदेसिए? पुच्छा, गोयमा! परिमंडलेणं सं० दुविहे पं०, तं० घणपरिमंडले य // 14
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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