________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1426 // 25 शतके उद्देशकः 2 सूत्रम् 723 द्रव्यग्रहे स्थितादिः तथाविधपुद्गलपरिणामसामर्थ्यात्, एवमसङ्ख्यातेऽपिलोकेतेष्वेव 2 प्रदेशेषुद्रव्याणांतथाविधपरिणामवशेनावस्थानादनन्तानामपि तेषामवस्थानमविरुद्धमिति // 6 // असङ्ख्यातलोकेऽनन्तद्रव्याणामवस्थानमुक्तम्, तच्चैकै कस्मिन् प्रदेशे तेषां चयापचयादिमद्भवतीत्यत आह लोगस्से त्यादि। कतिदिसिं पोग्गला चिजंति त्ति कतिभ्यो दिग्भ्य आगत्यैकत्राकाशप्रदेशे 'चीयन्ते' लीयन्ते छिज्जंति त्ति व्यतिरिक्ता भवन्ति उवचिजंति त्ति स्कन्धरूपाः पुद्गलाः पुद्गलान्तरसम्पर्कादुपचिता भवन्ति अवचिजंति त्ति स्कन्धरूपा एव प्रदेशविचटनेनापचीयन्ते॥७-८॥॥७२२॥ द्रव्याधिकारादेवेदमाह ९जीवेणं भंते! जाइंदव्वाइं ओरालियसरीरत्ताएगेण्हइ ताइं किं ठियाइंगेण्हइ अठियाइं गे०?, गोयमा! ठियाइंपिगेण्हइ अठि०पि गे०, 10 ताई भंते! किं दव्वओगे० खेत्तओगे० कालओगे० भावओगे०?, गोयमा! द०विगे० खे०विगे० का०विगे० भा०विगे० ताइंदव्वओ अणंतपएसियाइंदव्वाइंखे० असंखेजपएसोगाढाइएवं जहा पन्नवणाए पढमे आहारुद्देसए जाव निव्वाघाएणं छद्दिसिं वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं॥११ जीवेणं भंते! जाइंद० वेउवियसरीरत्ताए गे० ताई किं ठियाई गे० अठि० गेल?, एवं चेव नवरं नियमं छद्दिसिं एवं आहारगसरीरत्ताएवि॥१२ जीवेणं भंते! जाइंद० तेयगसरीरत्ताए गिण्हइ पुच्छा, गोयमा! ठियाइंगे० नो अठि० गे० सेसंजहा ओसरीरस्स कम्मगसरीरे एवं चेव एवं जाव भा०वि गि०,१३ जाइंद० दव्वओगे० ताई किं एगपएसियाई गे० दुपएसियाई गे०? एवं जहा भासापदे जाव अणुपुग्विंगे० नो अणाणुपुव्विं गे०, 14 ताई भंते! कतिदिसिं गेल?, गोयमा! निव्वाघाएणं जहा ओरालियस्स // 15 जीवे णं भंते! जाई द० सोइंदियत्ताए गे• जहा वेउब्वियसरीरं एवं जाव जिब्भिंदियत्ताए फासिंदियत्ताए जहा ओसरीरं मणजोगत्ताए जहा कम्मगसरीरं नवरं नियम छद्दिसिं एवं वइजोगत्ताएवि कायजोगत्ताएविजहा ओसरीरस्स / 16 जीवेणंभंते! जाइंद० आणापाणत्ताएगे० जहेव ओसरीरत्ताए जाव सिय पंचदिसिं। सेवं 8 // 1426