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________________ श्रीभगवत्य श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1423 // ज० जोए असं०, आहारगसरीरस्स उ० जोए असं० 20 ओरालियसरीरस्स वेउब्वियस्स चउव्विहस्स यमणजोगस्स चउब्विहस्सय वइजोगस्स एएसिणंदसण्हवि तुल्ले उ० जोए असंखेजगुणे 30 सेवं भंते! रत्ति॥ सूत्रम् ७१९॥पणवीसइमे सए पढमो उद्देसो॥२५ कइविहे ण मित्यादि, व्याख्या चास्य प्राग्वत् // 5 // योगस्यैवाल्पबहुत्वं प्रकारान्तरेणाह एयस्स ण मित्यादि, इहापि योगः परिस्पन्द एव / / 6 / / 719 // इह चेयं स्थापनामन वाक् काय 25 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 719 समविषमयोगिता पञ्चदशयोगजघन्यादिः 25 शतके उद्देशक:२ औदा असत्याअसत्य असत्यासत्यमनो असत्यमन मिश्रमन | मृषामन सत्यवाक् वाक् मिश्रवाक् मृषावाक् जघन्य | जघन्य जघन्य | जघन्य जघन्य जघन्य जघन्य | जघन्य 10 12 / 12 / 12 / 12 उत्कृष्ट | उत्कृष्ट | उत्कृष्ट | उत्कृष्ट | उत्कृष्ट उत्कृष्ट | उत्कृष्ट | उत्कृष्ट उत्कृष्ट वैक्रिय आहारक | मिश्र आहारक मिश्र जघन्य जघन्य जघन्य गमण जघन्य उत्कष्ट | उत्कृष्ट उत्कृष्ट | उत्कृष्ट उत्कृष्ट 13 14 ॥पञ्चविंशशतके द्वितीयोद्देशकः॥ प्रथमोद्देशके जीवद्रव्याणां लेश्यादीनां परिमाणमुक्तम्, द्वितीये तु द्रव्यप्रकाराणां तदुच्यत इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्र
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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