________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् 25 शतके उद्देशक:१ सूत्रम् 717 भाग-३ योगाल्पबहुत्वं | // 1419 // तच्चैवं- एएसिणं भंते! जीवाणं सलेस्साणं कण्हलेस्साण मित्यादि, अथ कियद्रं तद्वाच्यमित्याह जाव चउव्विहाणं देवाण मित्यादि, तञ्चैवं- एएसिणं भंते! भवणवासीणं वाणमंतराणं जोइसियाणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य कण्हलेसाणं जाव सुक्कलेसाण य कयरे२ हिंतो? इत्यादि॥१॥॥७१६ // अथ प्रथमशते उक्तमप्यासांस्वरूपं कस्मात्पुनरप्युच्यते?, उच्यते, प्रस्तावान्तरायातत्वात्, तथाहि-इह संसारसमापन्नजीवानांयोगाल्पबहुत्वंवक्तव्यमिति तत्प्रस्तावाल्लेश्याल्पबहुत्वप्रकरणमुक्तम्, तत एव लेश्याऽल्पबहुत्वप्रकरणानन्तरं संसारसमापन्नजीवांस्तद्योगाल्पबहुत्वं च प्रज्ञापयन्नाह 2 कतिविहा ण भंते! संसारसमावन्नगा जीवा पन्नत्ता?, गोयमा! चोद्दसविहा संसारसमा० जीवा य, तं० सुहुमअप्पज्जत्तगा 1 सुहुमपज्जत्तगा 2 बादरअप० 3 बादरप० 4 बेइंदिया अप्पज्जत्ता 5 बेइंदिया पजत्ता ६एवं तेइंदिया 8 एवं चरिंदिया 10 असन्निपंचिंदिया अप्पज्जत्तगा 11 असन्निपंचिंदिया पज्ज०१२ सन्निपं० अप०१३ सन्निपं०प०१४ / 3 एतेसिणंभंते! चोदसविहाणं संसारसमावन्नगाणं जीवाणंजहन्नुक्कोसगस्स जोगस्स कयरे 2 जाव विसेसाहिया?, गोयमा! सव्वत्थोवे सुहुमस्स अपज्जत्तगस्स जहन्नए जोए१बादरस्स अप० जहन्नए जोए असंखेनगुणे २बेंदियस्स अपज्जत्तगस्सज० जोए असंखेज्जगुणे 3 एवं तेइंदियस्स ४एवं चउरिदियस्स५असन्निस्स पंचिंदियस्स अप० ज० जोए असंखेजगुणे 6 सन्निस्स पं० अपज्ज० ज० जोए असंखेनगुणे 7 सुहुमस्स पजत्तगस्सज० जोए असंखे० 8 बादरस्स पन्ज० ज० जोए असंखे० 9 सुहु० अपज्ज० उ० जोए असंखे० 10 बादरस्स अपज्ज० उ० जोए असंखेज्ज० 11 सुहुमस्स पज्जत्तगस्स उक्कोसए जोए असंखेन्ज० 12 बादरस्स पज० उ० जोए असंखेज०१३ बेंदियस्स पज० ज० जोए असंखेन० 14 एवं तेंदिय एवं जाव सन्निपं० पज्जत्तगस्स ज० जोए असंखेज०१८ बेंदियस्स अपज्ज० उ० जोए असंखेज्ज०१९ एवं तेंदियस्सवि 20 एवं चव्यस्सवि 21 एवं जाव सन्निपं-स्स अपज्जत्तगस्स उ० जोए असंखे० 23 बेंदियस्स पज० उ० जोए असंखे०२४ एवं तेव्स्सवि // 1419 //