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________________ 24 शतके श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1413 // उद्देशकः 24 सूत्रम् 715 वैमानिकोत्पादः उक्कोसकालद्वितीओ जाओ आदिल्लगमगसरिसा तिन्नि गमगाणेयव्वा नवरं ठितिं कालादेसंच जाणेजा ९॥८जइसंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदिय० संखेजवासाउयस्स जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणस्स तहेव नववि गमा, नवरं ठिति संवेहं च जाणे०, जाहे य अप्पणा जहन्नकालट्ठितिओ भवति ताहे तिसुवि गमएसु सम्मदिट्ठीवि, मिच्छादि०,णो सम्मामिच्छादिट्ठी दो नाणा, दो अन्नाणा नियम, सेसंतंचेव॥९ जइमणुस्सेहितोउववखंति भेदोजहेव जोतिसिएसुउववजमाणस्स जाव१० असंखेन्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए सोहम्मे कप्पे देवत्ताए उववज्जित्तए एवं जहेव असंखेज्जवासाउयस्स सन्निपं०ति जोणिस्स सोहम्मे कप्पे उववज्जमाणस्स तहेव सत्त गमगा नवरं आदिल्लएसु दोसु गमएसु ओगाहणा ज० गाउयं, उ० तिन्नि गाउयाई, ततियगमे ज० तिन्नि गाउयाई, उ०वि तिन्नि गा०, चउत्थगमए ज० गाउयं, उ०वि गा०, पच्छिमएसुगमएसुज० तिन्नि गाउयाई, उ० तिन्नि गा० सेसंतहेव निरवसे०९॥११ जइ संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्सेहिंतो एवं संखे० सन्निमणु० जहेव असुरकुमारेसु उववज्जमाणाणं तहेवणव गमगा भा० नवरंसोहम्मदेवट्ठिति संवेहं च जाणे० , सेसंतं चेव 9 // 12 ईसाणदेवा णं भंते! कओहिंतो उवव०?, ईसाणदेवाणं एस चेव सोहम्मगदेवसरिसा वत्तव्वया नवरं असंखेजवान्सन्निपंति जोणियस्स जेसु ठाणेसु सोहम्मे उववजमाणस्स पलिओवमठितीसु ठाणेसु इहं सातिरेगं पलिओवमं कायव्वं, चउत्थगमे ओगाहणा ज० धणुहपुहुत्तं, उ० सातिरेगाई दो गाउयाई सेसं तहेव 9 / 13 असंखेजवा०सन्निमणुसस्सवि तहेव ठिती जहा पं०ति जोणियस्स असंखेज्जवासाउयस्स ओगाहणाविजेसुठाणेसुगाउयं तेसु ठाणेसु इहं सातिरेगंगाउयं सेसं तहेव 9 / 14 संखेज्जवासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं मणुस्साण य जहेव सोहम्मेसु उववज्जमाणाणं तहेव निरवसेसं णववि गमगा नवरं ईसाणठिति संवेहं च जा०९॥१५ सणंकुमारदेवा णं भंते! कओहिंतो उवव० उववाओ जहा सक्करप्पभापुढविनेरइयाणं जाव 16 पज्जत्तसंखेजवान्सन्निपं तिजोणिए णं भंते! जे भविए सणंकुमारदेवेसु उवव० अवसेसा // 1413 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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