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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1412 / / त्रय एवेत्येवं सप्त / / 8 // असङ्ख्यातवर्षायुष्कमनुष्याधिकारे ओगाहणा सातिरेगाइं नवधणुसयाइन्ति विमलवाहनकुलकरपूर्वकालीनमनुष्यापेक्षया, तिन्नि गाउयाइन्ति एतच्चैकान्तसुषमादिभाविमनुष्यापेक्षया, मज्झिमगमए त्ति पूर्वोक्तनीतेस्त्रिभिरप्येक एवायमिति // 11 // // 714 // चतुर्विंशतितमशते त्रयोविंशतितमः // 24-23 // 24 शतके उद्देशक: 24 सूत्रम् 715 वैमानिकोत्पादः ॥चतुर्विंशशतके चतुर्विंशमोद्देशकः॥ अथ चतुर्विंशतितमोद्देशके किश्चिल्लिख्यते १सोहम्मदेवाणंभंते! कओहिंतो उवव० किं नेरइएहिंतो उवव०? भेदोजहा जोइसियउद्देसए, 2 असंखेजवासाउयसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते! जे भविए सोहम्मगदेवेसु उवव० से णं भंते! केवतिं काल?, गोयमा! ज० पलिओवमट्टितीएसु, उ० तिपलिओवमट्टितीएसु उवव०, 3 ते णं भंते! अवसेसं जहा जोइसिएसु उववजमाणस्स नवरं सम्मदिट्ठीवि, मिच्छादि०, णो सम्मामिच्छादिट्ठी, णाणीवि, अन्नाणीवि, दोणाणा दो अन्नाणा नियम, ठिती ज० दो पलिओवमाई, उ० छप्पलिओवमाइंएवतियं 1, 4 सोचेवजहन्नकालट्ठितिएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया नवरं काला० ज० दोपलिओवमा, उ० चत्तारि पलिओवमाई एवतियं २,५सोचेव उक्कोसकालट्ठितिएसुउववन्नोज तिपलिओवम, उ०वि तिपलि एसचेववत्तव्वया नवरंठिती ज० तिन्नि पलिओवमाई, उ०वि तिन्नि पलि० सेसंतहेव कालादे० ज० छप्पलिओवमाई, उ०वि छप्पलिति एवतियं 3, 6 सोचेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितिओ जाओ ज० पलिओवमट्ठितिएसु, उ० पलिओवमट्टि एस चेव वत्तव्वया नवरं ओगाहणा ज० धणुहपुहत्तं, उ० दो गाउयाई, ठिती ज० पलिओवमं, उ०वि पलि० सेसं तहेव, कालादे० ज० दो पलिओवमाइं उ०पि दो पलि. एवतियं 6, 7 सो चेव अप्पणा // 2x0 2 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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