SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 24 शतके उद्देशकः 23 श्रीभगवत्य श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1410 // सूत्रम् 714 ज्योतिष्कोत्यादः मन्भहियं, उ० तिन्नि पलिओवमाई,एवं अणुबंधोवि, कालादे० ज० दोपलिओवमाइंदोहिं वाससयसहस्सेहिमब्भहि०, उ० चत्ता० पलि० वाससयसहस्सम०३, 6 सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ ज० अट्ठभागपलिओवमट्टितीएसु उववन्नो उ.वि अट्ठ०पलि० उव०,७ तेणं भंते! जीवा एसचेव वत्तव्वया नवरं ओगाहणाज. धणुहपुहुत्तं, उ० सातिरेगाइं अट्ठारसधणुसयाई ठिती ज० अट्ठभागपलिओवमं, उ० अट्ठभागपलिओवम, एवं अणुबंधोऽविसेसंतहेव, कालादे० ज० दो अट्ठभागपलिओवमाइं, उ० दो अट्ठ०पलिओ० एवतियं जहन्नकालट्ठितियस्स एस चेव एक्को गमो 6,8 सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितिओ जाओ सा चेव ओहिया वत्तव्वया नवरं ठिती ज० तिन्नि पलि०, उ० तिन्नि पलिओवमाई एवं अणुबंधोवि, सेसंतंचेव, एवं पच्छिमा तिन्नि गमगा णेयव्वा नवरं ठिति संवेहंचजाणेजा, एते सत्तगमगा।९ जइसंखेनवासाउयसन्निपंचिंदिय० संखेज्जवासाउयाणंजहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणंतहेव नवविगमा भाणियव्वा नवरंजोतिसियठितिसंवेहंचजा० सेसंतहेव निरवसेसंभाणियव्वं, 10 जइमणुस्सेहितो उवव० भेदो तहेव जाव 11 असंखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए जोइसिएसु उववजित्तए से णं भंते! एवं जहा असंखेज्जवासाउयसन्निपंचिंदियस्स जोइसिएसुचेव उववज्जमाणस्स सत्त गमगा तहेव मणुस्साणविनवरं ओगाहणाविसेसो पढमेसु तिसुगमएसु ओगाहणा ज. सातिरेगाई नव धणुसयाई, उ० तिन्नि गाउयाई मज्झिमगमए ज. सातिरेगाई नव धणुसयाई, उ.वि साति० नव धणु०, पच्छिमेसु तिसु गमएसु ज० तिन्नि गाउयाई, उ० तिन्नि गाउयाइं सेसं तहेव निरवसेसं जाव संवेहोत्ति, जइ संखेज्जवासाउयसन्निमणुस्से०१२ संखेज्जवासाउयाणंजहेव असुरकुमारेसु उववजमाणाणं तहेव नवगमगाभा०, नवरंजोतिसियठितिं संवेहंच जा०, सेसंतंचेव निरवसेसं। सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 714 // 24-23 // जहन्नेणं दो अट्ठभागपलिओवमाइन्ति द्वौ पल्योपमाष्टभागावित्यर्थस्तत्रैकोऽसङ्ख्यातायुष्कसम्बन्धी द्वितीयस्तु तारक // 1410 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy