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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1409 // 24 शतके उद्देशक: 23 सूत्रम् 714 ज्योतिष्कोत्पादः पुन्वकोडी दसवाससहस्सेहिं अब्भहिया उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं दसहिं वासहस्सेहिं अब्भहियाइन्ति,॥ 3 // तृतीये गमे ठिई से. जहन्नेणं पलिओवमं ति यद्यपि सातिरेका पूर्वकोटी जघन्यतोऽसङ्ख्यातवर्षायुषां तिरश्चामायुरस्ति तथाऽपीह पल्योपममुक्तं पल्योपमायुष्कव्यन्तरेषूत्पादयिष्यमाणत्वायतोऽसङ्ख्यातवर्षायुःस्वायुषो बृहत्तरायुष्केषु देवेषुनोत्पद्यते, एतच्च प्रागुक्तमेवेति // 4 // ओगाहणा जहन्नेणं गाउयन्ति येषां पल्योपममानायुस्तेषामवगाहना गव्यूतं ते च सुषमदुष्षमायामिति // 5 // // 713 // चतुर्विंशतितमशते द्वाविंशतितमः॥२४-२२॥ ॥चतुर्विंशशतके त्रयोविंशमोद्देशकः // अथ त्रयोविंशतितमोद्देशके किञ्चिल्लिख्यते १जोइसियाणं भंते! कओहिंतो उववजंति किं नेरइए० भेदोजाव सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवव० नो असन्निपंचिंदियतिरिक्ख०, २जइसन्नि० किं संखेज० असंखेज्ज?, गोयमा! संखेन्जवासाउय०३ असंखेज्जवासाउय०, सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णंभंते! जे भविए जोतिसिएसु उवव० से णं भंते! केवति०?, गोयमा! ज० अट्ठभागपलिओवमट्ठितिएसु, उ० पलिओवमवाससयसहस्सट्ठितिएसु उवव०, अवसेसं जहा असुरकुमारुद्देसए नवरं ठिती ज० अट्ठभागपलिओवमाई, उ० तिन्नि पलिओवमाई, एवं अणुबंधोविसेसंतहेव, नवरं कालादे० ज० दो अट्ठभागपलिओवमाई, उ० चत्तारि पलिओवमाइंवाससयसहस्समन्भहियाईएवतियं १,४सोचेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नोज० अट्ठभागपलिओवमट्ठितिएसु, उ० अट्ठभागपलिओवमट्ठितिएसु एस चेव वत्तव्वया नवरंकालादेसं जाणे०२,५सो चेव उक्कोसकालठिइएसु उवव० एस चेव वत्तव्वया णवरं ठिती ज० पलिओवमं वाससयसहस्स // 1409 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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