________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1403 // 24 शतके उद्देशक: 21 सूत्रम् 712 मनुष्योत्पादः नवरं तेउवाऊ पडिसेहेयव्वा, सेसं तं चेव जाव 4 पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उववज्जित्तए से णं भंते! केवति०?, गोयमा! ज० अंतोमुहुत्तट्ठितिएसु, उ० पुव्वकोडीआउएसुउवव०,५ तेणंभंते! जीवा एवं जच्चेव पंचिंति जोणिएसु उववजमाणस्स पु०क्काइयस्स वत्तव्वया साचेव इहवि उववजमाणस्स भा० णवसुविगमएसु, नवरंततियछट्ठणवमेसुगमएसुपरिमाणंज० एक्कोवा दोवा तिन्निवा, उ० संखेज्जा उवव०, जाहे अप्पणा जहन्नकालट्ठितिओभवति ताहे पढमगमए अज्झवसाणा पसत्थावि अप्पसत्थावि बितियगमए अप्पसत्था ततियगमए पसत्था भवंति सेसं तं चेव निरवसेससं 9 // 6 जइ आउक्काइए एवं आउक्काइयाणवि, एवं वणव्याणवि, एवं जाव चउरिवि, असन्निपंचिंति जोणिय सन्निपंचिंति जोणियअसन्निमणुस्ससन्निमणुस्साण य एते सव्वेवि जहा पंचिंति जोणियउद्देसए तहेव भाणियव्वा, नवरं एयाणि चेव परिमाणअज्झवसाणणाणत्ताणि जाणिज्जा पुढविकाइयस्स एत्थ चेव उद्देसए भणियाणि सेसं तहेव निरवसेसं // 7 जइ देवेहिंतो उवव० किं भवणवासिदेवेहिंतो उवव० वाणमंतर० जोइसिय० वेमाणियदेवेहिंतो उवव०?, गोयमा! भवणवासी जाव वेमाणिय०, 8 जइ भवण० किं असुरजाव थणिय.?, गोयमा! असुर जाव थणिय०, 9 असुरकुमारे णं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उवव० से णं भंते! केवति०?, गोयमा! ज० मासपुहत्तट्ठितिएसु, उ० पुव्वकोडिआउएसु उवव०, एवं जच्चेव पंचिंतिजोणिउद्देसए वत्तव्वया सच्चेव एत्थवि भा०, नवरं जहा तहिं जहन्नगं अंतोमुहत्तहितीएसुतहा इहमासपुहुत्तट्ठिईएसु, परिमाणंज एक्कोवादोवा तिन्निवा, उ० संखेज्जा उववजंति,सेसंतंचेव, एवंजाव ईसाणदेवोत्ति, एयाणि चेव णाणत्ताणि सणंकुमारादीया जावसहस्सारोत्ति जहेव पंचिंति जोणिउद्देसए, नवरं परिमाणं ज० एक्को वादोवा तिन्नि वा, उक्कोसेणंसंखेजा उव०, उववाओज०वासपुहुत्तट्ठितिएसु, उ० पुव्वकोडीआउएसु उवव०, सेसंतंचेवसंवेहवासपुहुत्तंपुव्वकोडीसु करेजा ॥सणंकुमारे ठिती चउगुणिया अट्ठावीसंसागरोवमा भवंति,माहिदे ताणि चेव सातिरेगाणि, बम्हलोए चत्तालीसं लंतए // 1403 //