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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1402 // 24 शतके उद्देशकः 21 सूत्रम् 712 मनुष्योत्पादः तु सूत्रानुसारेणोपयुज्य वाच्या // 48 // ओगाहणा जहा ओगाहणासंठाणे त्ति अवगाहना यथाऽवगाहनासंस्थाने प्रज्ञापनाया एकविंशतितमे पदे, तत्र चैवं देवानामवगाहना भवणवणजोइसोहम्मीसाणे सत्त हुंति रयणीओ। एक्केक्कहाणि सेसे दुद्गे य दुगे | चउक्के य॥१॥ इत्यादि जहा ठितिपए त्ति प्रज्ञापनायाश्चतुर्थपदे स्थितिश्च प्रतीतैवेति // 54 // // 711 // चतुर्विंशतितमशते विंशतितमः॥२४-२०॥ ॥चतुर्विंशशतके एकविंशमोद्देशकः॥ अथैकविंशतितमे किञ्चिल्लिख्यते १मणुस्सा णं भंते! कओहिंतो उवव० किं नेरइएहिंतो उवव० जाव देवेहिंतो उवव०?, गोयमा! णेरइएहिंतोवि उवव० जाव देवेहितोवि उव०, एवं उववाओ जहा पंचिंदियतिरिक्खजोणिउद्देसए जाव तमापुढविनेरइएहितोवि उववखंति णो अहेसत्तमपुढविनेरइएहिंतो उवव०,२ रयणप्पभपुढविनेरइएणं भंते! जे भविए मणुस्सेसु उवव० से णं भंते! केवतिकाल.?, गोयमा! ज. मासपुहुत्तट्टितीएसु उक्कोसेणं पुव्वकोडी आउएसु अवसेसा वत्तव्वया जहा पंचिंदियतिरिक्खजो० उववजंतस्स तहेव नवरं परिमाणे ज० एक्को वा दो वा तिन्निवा, उ० संखेज्जा उव०, जहा तहिं अंतोमुहुत्तेहिं तहा इहं मासपुहुत्तेहिं संवेहं करेजा सेसंतं चेव ९॥जहा रयणप्पभाए वत्तव्वया तहा सक्करप्यभाएविव० नवरं ज० वासपुहुत्तट्ठिइएसु, उ० पुव्वकोडि, ओगाहणा लेस्साणाणट्ठितिअणुबंधसंवेहं णाणत्तं च जाणेजा जहेव तिजोणियउद्देसए एवं जाव तमापुढविनेरइए 9 // 3 जइ तिजोणिएहितो उववखंति किं एगिदियति जोणिएहितो उवव० जाव पंचिंति जोणिएहिं उवव०?, गोयमा! एगि:ति जोणिए भेदो जहा पंचिंति जोणिउद्देसए (c) भवनपतिवानमन्तरज्योतिष्कसौधर्मेशानेषु सप्त भवन्ति रत्नयः / एकैकरत्निहानिः शेषेषु द्वयोर्द्वयोश्च द्वयोश्चतुष्के च॥१॥ // 1402 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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