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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1394 // 24 शतके उद्देशकः 17-1819-20 सूत्रम् 708-711 विकलोत्पादः जहन्नकालट्ठितीओ जातो ज० अंतो०, उ० पुव्वकोडीआउएसु उवव० लद्धी से जहा एयस्स चेव सन्निपंचिंदियस्स पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स मज्झिल्लएसुतिसुगमएसु सच्चेव इहवि म०तिसुग० कायव्वा, संवेहो जहेव एत्थ चेव असन्निस्स मज्झिमेसु तिसु गमएसु 30 सोचेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओ जाओ जहा पढमगमओणवरं ठिती अणुबंधोज० पुव्वकोडी, उ.विपुव्वकोडी कालादेसेणं ज० पुव्वको० अंतोमुत्तमब्भहिया, उ० तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहुत्तमब्भहियाई 7, 31 सो चेव जहन्नकालट्ठितिएसु उवव० एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालादेसेणंज. पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तमब्भहिया, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुत्तेहिं अब्भहियाओ 8, 32 सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो ज० तिपलिओवमट्टिती, उ० तिपलिओवमट्ठि० अवसेसंतंचेव नवरं परिमाणं ओगाहणायजहा एयस्सेव तइयगमए, भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादे० ज० तिन्नि पलिओवमाई पुव्वकोडीए अब्भहियाई, उ० तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडीए अब्भहियाई एवतियं 9 // 33 जड़ मणुस्सेहिंतो उववजंति किं सन्निमणु० असन्निमणु०?, गोयमा! सन्निमणु० असन्निमणु०, 34 असन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए पंचिंदियतिरिक्ख० उवव० से णं भंते! केवतिकाल०?, गोयमा! ज० अंतो०, उ० पुव्वको आउएसु उव० लद्धी से तिसुविगमएसु जहा पुढविकाइएसु उववजमाणस्स संवेहो जहा एत्थ चेव असन्निपंचिंदियस्स मज्झिमेसुतिसुगमएसुतहेव निरवसेसोभाणियव्वो, 35 जइसन्निमणुस्स० किं संखेजवासाउयसन्निमणुस्स० असंखेज्जवासाउय०?, गोयमा! संखेज्जवासा० नो असंखे०, 36 जइसंखेज० किंपज्जत्त० अपज्जत्त०? गोयमा! पज्जत्त० अपज्जत्तसंखेजवासाउय०, 37 सन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए पंचिंदि० तिरिक्ख० उवव० से णं भंते! केवति०? गोयमा! ज० अंतो०, उ० तिपलिओवमट्ठितिएसुउव०, 38 तेणंभंते! लद्धी से जहा एयस्सेव सन्निमणुस्सस्स पुढविकाइएसु उववजमाणस्स पढमगमए जाव भवादेसोत्ति, कालादे० ज० दो अंतो०, उ० तिन्नि पलि० पुव्वकोडिपुत्तमब्भहियाई 1, 39 सो चेव
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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