________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1393 // |24 शतके उद्देशक: 17-1819-20 सूत्रम् | 708-711 विकलोत्पादः सोचेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितिओजाओसच्चेव पढमगमगवत्त०, नवरं ठितीज० पुव्वकोडी उ० पुव्वकोडी सेसंतंचेव कालादेसेणं ज० पुव्वकोडी, अंतोमुत्तमन्भहिया उ० पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पुव्वकोडिपुत्तमन्भहियं एवतियं 7, 21 सो चेव जहन्नकालट्टितीएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया जहा सत्तमगमे, नवरं कालादेसेणंज० पुव्वकोडी अंतोमुत्तमब्भहिया, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहिं अंतोमुहुत्तेहि अन्भहियाओ एवतियं०८, 22 सो चेव उक्कोसकालट्ठिइएसु उववन्नो ज० पलिओवमस्स असंखेजइभागं, उ०विपलि. असं० एवं जहारयणप्पभाए उववजमाणस्स असन्निस्स नवमगमए तहेव निरवसेसंजाव कालादेसोत्ति, नवरंपरिमाणंजहा एयस्सेव ततियगमे सेसंतंचेव 9 // 23 जइ सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उवव०किं संखेन्जवासा० असं०?, गोयमा! संखेज० णो असंखेज०, २४जइ संखेल्न जाव किं पज्जत्तसंखेज० अपज्जत्तासंखेन?, दोसुवि, 25 संखेज्जवासाउयसन्निपंचिंति जो जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उवव० से णं भंते! केवति०?, गोयमा! ज० अंतो०, उ० तिपलिओवमद्वितीएसु उवव०, 26 ते णं भंते! अवसेसं जहा एयस्स चेव सन्निस्स रयणप्पभाए उववज्जमाणस्स पढमगमए नवरं ओगाहणा ज० अंगुलस्स असंखेजइभागं, उ० जोयणसहस्सं, सेसंतंचेवजाव भवादेसोत्ति, कालादेसेणंज० दो अंतोमुहुत्ता, उ० तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडीपुहुत्तमन्भहियाई एवतियं०१, 27 सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालादेसेणं ज० दो अंतोमु०, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ चउहि अंतोमुत्तेहिं अब्भहियाओ 2, 28 सोचेव उक्कोसकालट्ठितीएसुज० तिपलिओवमद्वितीएसु उववन्नो, उ०वि तिपलि. उवव०, एस चेव वत्तव्वया नवरं परिमाणं ज० एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उ० संखेल्जा उवव०, ओगाहणा ज० अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उ० जोयणसहस्संसेसंतंचेव जाव अणुबंधोत्ति, भवादेसेणं दो भवग्गहणाइंकालादेसेणं ज० तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुत्तमब्भहियाई, उ० तिन्नि पलिओवमाइं पुव्वकोडीए अब्भ० 3, 29 सो चेव अप्पणा // 1393 //