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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1392 // 24 शतके | उद्देशक: |17-18|19-20 सूत्रम् 708-711 विकलोत्पादः उववाएयव्वा, नवरं सव्वत्थ अप्पणो लद्धी भाणियव्वा, णवसुवि गमएसुभवादेसेणंज० दो भवग्ग०, उ० अट्ठभवग्ग० कालादेसेणं उभओ ठितीं करेजा सव्वेसिं सव्वगमएसु, जहेव पुढविकाइएसु उववजमाणाणं लद्धी तहेव सव्वत्थ ठिति संवेहं च जाणेजा // 13 जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववखंति किं सन्निपंचिंति जोणि० उवव० असन्निपंचिंति जोणि० उवव०?, गोयमा! सन्निपंचिंदिय असन्निपंचिंदियभेओ जहेव पुढविकाइएसु उववजमाणस्स जाव 14 असन्निपंचिंति जोणिए णं भंते! जे भविए पंचिंति जोणिएसु उवव० से णं भंते! केवतिकाल?, गोयमा! ज० अंतोमुहत्तं, उ० पलिओवमस्स असंखेजइभागवितीएसु उववजमाणं०, 15 तेणंभंते! अवसेसंजहेव पुढविकाइएसुउववजमाणस्स असन्निस्स तहेव निरवसेसंजाव भवादेसोत्ति, कालादेसेणं ज० दो अंतोमुहुत्ताई, उ० पलिओवमस्स असंखेजइभागं पुव्वकोडिपुहुत्तमन्भहियं एवतियं०१, बितियगमए एस चेव लद्धी नवरं कालादेसेणंज दो अंतोमुत्ता, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओचउहिं अंतोमुत्तेहिं अब्भहियाओ एवतियं०२,१६ सोचेव उक्कोसकालद्वितीएसु उववन्नो ज० पलिओवमस्स असंखेजतिभागट्ठिइएसु, उ० पलि० असं०ट्ठितिएसु उवव०१७ ते णं भंते! जीवा एवं जहा रयणप्पभाए उववजमाणस्स असन्निस्स तहेव निरवसेसंजाव कालादेसोत्ति, नवरंपरिमाणे ज० एक्को वा दोवा तिन्निवा, उ० संखे० उवव०, सेसंतं चेव 3, सो चेव अप्पणो जहन्नकालट्ठितिओ ज० अंतोमुत्तद्वितीएसु, उ० पुव्वकोडिआउएसु उवव०, ते णं भंते! अवसेसं जहा एयस्स पुढविक्काइएसु उववज्जमाणस्स मज्झिमेसुतिसुगमएसुतहा इहविम० तिसुग० जाव अणुब०, भवादे० ज० दो भवग्गह०, उ० अट्ठ भवग्ग०, कालादेसेणंज० दो अंतो०, उ० चत्तारि पुश्विकोडीओ चउहिं अंतोमुहत्तेहिं अब्भहियाओ४, 18 सो चेव जहन्नकालट्ठितिएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया, नवरं कालादेसेणं ज० दो अंतोमुहुत्ता, उ० अट्ठ अंतोमु० एवतियं 5, 19 सो चेव उक्कोसकालट्ठितिएसु उवव० ज० पुव्वकोडीआउएसु, उ०विपु०आ० उवव० एस चेव वत्तव्वया नवरं कालादे० जाणेजा 6, 20
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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