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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1386 // ति अष्टमो भागोऽष्टभागः स एवावयवे समुदायोपचारादष्टभागपल्योपमम्, इदं च तारकदेवदेवीराश्रित्योक्तम्, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससयसहस्समब्भहियं ति इदं च चन्द्रविमानदेवानाश्रित्योक्तमिति // 52 // अथ वैमानिकेभ्यस्तमुत्पादयन्नाह जई इत्यादि, एतच्च समस्तमपि पूर्वोक्तानुसारेणावसेयमिति // 53-56 // // 703 // चतुर्विंशतमशते द्वादशः॥२४-१२॥ २४शतके | उद्देशक: 13-1415-16 सूत्रम् 704-707 अप्लेजो वायुवनाना मुत्पादः ॥चतुर्विंशशतके त्रयोदश-चर्तुदश-पञ्चदश-षोडशमोद्देशकः॥ आउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उवव० एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसए जाव पुढविक्काइया णं भंते! जे भविए आउक्काइएसु उववजित्तएसेणंभंते! केवति,गोयमा!जहन्नेणं अंतोमु०, उक्कोसे० सत्तवाससहस्सटिइएसुउववजेजा एवं पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो भाणियव्वोणवरं ठितीं संवेहंच जाणेजा, सेसंतहेव सेवं भंते 2 त्ति // सूत्रम् 704 // 24-13 // तेउक्काइया णं भंते! कओहिंतो उववखंति एवं जहेव पुढविक्काइयउद्देसगसरिसो उद्देसो भाणियव्वो नवरं ठिति संवेहं च जाणेजा देवेहितोण उवव०, सेसंतं चेव / सेवं भंते! 2 जाव विहरति ॥सूत्रम् 705 // 24-14 / / वाउक्काइयाणं भंते! कओहिंतो उवव० एवं जहेव तेउक्काइयउद्देसओतहेव नवरं ठिति संवेहंच जाणेज्जा / सेवं भंते शत्ति॥सूत्रम् 706 // 24-15 // वणस्सइकाइया णं भंते! कओहिंतो उववजंति एवं पुढविक्काइयसरिसो उद्देसो नवरं जाहे वणस्सइकाइओ वणस्सइकाइएसु उववज्जति ताहे पढमबितियचउत्थपंचमेसुगमएसुपरिमाणं अणुसमयं अविरहियं अणंता उवव० भवादे. जह० दो भवग्गह० उक्को० अणंताइंभवग्गहणाईकालादे० जह० दो अंतोमु०, उ० अणंतं कालं एवतियं, सेसा पंच गमा अट्ठभवग्गहणिया तहेव नवरं ठितीं // 1386 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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