________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1378 // 24 शतके उद्देशक: 12 सूत्रम् 702 पञ्चेन्द्रियतिर्यगन्तेभ्यः पृथ्व्याउत्पादः अब्भहियाई उ० अट्ठासीती वाससहस्साई अडयालीसाए संवच्छरेहिं अब्भहियाई एवतियं 9 // 26 जइ तेइंदिएहिंतो उववज्जइ एवं चेव नव गमगा भा०, नवरं आदिल्लेसु तिसुवि गमएसु सरीरोगाहणा ज० अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उ० तिन्नि गाउयाई, तिन्नि इंदियाई, ठितीज० अंतो०, उ० एगूणपन्नं राइंदियाई, तइयगमएकाला० ज० बावीसंवाससहस्साई अंतो०मब्भहियाई, उ० अट्ठासीति वाससहस्साईछन्नउईराइंदियसयमन्भहियाइएवतियं०, मज्झिमा तिन्नि गमगा तहेव पच्छिमावि तिनि गमगा तहेव, नवरं ठितीज० एकूणपन्नं राइंदियाई उ.वि एगू० राइं०, संवेहो उवजुंजिऊण भा०९॥ 27 जइ चउरिदिएहिंतो उववजड़ एवं चेव चउरिंदियाणवि नव गमगा भा०, नवरं एतेसुचेव ठाणेसु नाणत्ता भा०, सरीरोगाहणाज० अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उ० चत्तारि गाउयाई, ठिती ज० अंतो० उ० य छम्मासा एवं अणुबंधोवि चत्तारि इंदियाई सेसंतहेव जाव नवमगमए काला० ज० बावीसं वाससहस्साई छहिं मासेहि अब्भ०, उ० अट्ठासीतिं वाससहस्साई चउवीसाए मासेहिं अब्भ० एवतियं 9 // 28 जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उवव० किं सन्निपंचिंति जोणिएहिंतो उव० असन्निपंचिंदियति जोणिए०?, गोयमा! सन्निपंचिंदिय०, 29 जइ असन्निपंचिंदिय०, किं जलयरेहितो उ० जाव किं पजत्तएहितोउव० अपज्जत्तएहिंतो उव०?,गोयमा! पज्जत्तएहिंतोवि उवव० अपज्जत्तएहिंतोवि उवव०, 30 असन्निपंचिंति जोणिएणं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववजित्तए सेणंभंते! केवति?, गो०! ज० अंतो०, उ० बावीसंवाससह०, 31 तेणंभंते! जीवा एवं जहेव बेइंदियस्स ओहियगमएलद्धी तहेव, नवरंसरीरोगाहणाज० अंगुलस्स असंखे०भा०, उ० जोयणसह०, पंचिंदिया ठिती अणुबं० ज० अंतो०, उ० पुव्वको० सेसंतं चेव भवादे० ज० दो भवग्गहणाई, उ० अट्ठ भवग्ग०, कालादे० ज० दो अंतो०, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ अट्ठासीतीए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवतियं० णवसुविगमएसुकायसंवेहो भवादे० ज० दो भवग्गहणाई, उ० अट्ठ भवग्ग०, कालादे० उवजुजिऊण भाणियव्वं, नवरं मज्झिमएसुतिसुगमएसु जहेव बेइंदियस्स पच्छिल्लएसु // 1378 //