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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1377 // 24 शतके उद्देशकः 12 सूत्रम् 702 पञ्चेन्द्रियतिर्यगन्तेभ्यः पृथ्व्याउत्पादः अंतोमुत्तट्टितीएसु, उ० बावीसंवाससहस्सट्ठितीएसु, 21 ते णं भंते! जीवा एगसमएणं०?, गोयमा! ज० एको वा दो वा तिन्निवा, उ० संखेज्जा वा असं० उवव०, छेवट्ठसंघयणी ओगाहणा ज० अंगुलस्स असंखेजइ०, उ० बारस जोयणाई, हुंडसंठिया, तिन्नि लेसाओ, सम्मदिट्ठीवि, मिच्छादिट्ठीवि, नो सम्मामिच्छादिट्ठी, दो णाणा दो अन्नाणा नियम, णो मणजोगी, वयजोगीवि, कायजोगीवि, उवओगो दुविहोवि, चत्तारि सन्नाओ, चत्तारि कसाया, दो इंदिया प० त० जिभिंदिए य फासिंदिए य, तिन्नि समुग्घाया सेसं जहा पुढविकाइयाणं, णवरं ठिती ज० अंतो०, उ० बारस संवच्छराई एवं अणुबंधोऽवि, सेसंतं चेव, भवादे० ज० दो भ० उ० संखेल्जाइं भवग्गहणाई, कालादे० ज० दो अंतोमु०, उ० संखेल्नं कालं एवतियं० 1, 22 सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया सव्वा 2, 23 सोचेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो एसा चेव बेंदियस्सलद्धी, नवरं भवादे० ज० दो भवग्ग०, उ० अट्ठ भवग्ग०, कालादे० ज० बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुत्तमब्भ०, उ० अट्ठासीतिं वाससहस्साई अडयालीसाए संवच्छरेहिं अब्भ० एवतियं०३, 24 सोचेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ तस्सविएस चेव वत्तव्वया तिसुवि गमएसु नवरं इमाइंसत्त णाणत्ताई, सरीरोगाहणा जहा पुढविकाइयाणं,णो सम्मदिट्ठी, मिच्छदिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी, दो अन्नाणा णियमं, णो मणजोगी, णो वयजोगी, कायजोगी, ठिती ज० अंतो०, उ०वि अंतो० अज्झवसाणा अपसत्था अणुबंधो जहा ठिती संवेहो तहेव आदिल्लेसु दोसु गमएसु तइयगमए भवादेसो तहेव अट्ठ भवग्गहणाई, कालादेसेणं ज० बावीसं वाससहस्साइं अंतो०मन्भहियाई, उ० अट्ठासीतिं वाससहस्साइंचउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भ०६, 25 सोचेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठितीओजाओ एयस्सवि ओहियगमगसरिसा तिन्नि गमगा भाणियव्वा, नवरं तिसुवि गमएसु ठिती ज० बारस संवच्छराई, उ०वि बारस सं०, एवं अणुबंधोवि, भवादे० ज० दो भवग्गहणाई, उ० अट्ठ भवग्ग०, कालादे० उवजुजिऊण भा० जाव णवमे गमए ज० बावीसं वाससहस्साई बारसहिं संवच्छरेहिं // 1377 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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