________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1371 // 24 शतके उद्देशक: 12 सूत्रम् 701 पृथ्व्याउत्पादः ॥चतुर्विंशशतके द्वादशमोद्देशकः॥ अथ पृथिवीकायिकोद्देशको द्वादश: १पुढविकाइया णंभंते! कओहिंतो उवव० किं नेरइएहिंतो उववजंति, तिरिक्ख० मणुस्स० देवेहितो उववजंति?, गोयमा! णो णेरइएहिंतो उवव०,तिरिक्ख० मणुस्स० देवेहितोवि उव०,२ जइ तिजोणिए किं एगिदियति जोणिए एवं जहा वक्कंतीए उववाओ जाव जइ बायरपुढविक्काइयएगिदियति जोणिएहितो उव० किं पज्जत्तबादरजाव उव० अपज्जत्तबादरपुढवि?, गोयमा! पज्जत्तबादरपुढवि अपजत्तबादरपुढविकाइ० जाव उव०, 3 पुढविक्काइए णं भंते! जे भविए पुढविक्काइएसु उववजित्तए से णं भंते! केवतिकालद्वितीएसुउव०?,गोयमा! ज० अंतोमुत्तद्वितीएसु, उ० बावीसवाससहस्सद्वितीएसु उव०,४ तेणंभंते! जीवा एगसमएणं पुच्छा, गोयमा! अणुसमयं अविरहिया असंखेना उव० छेवट्ठसंघयणी सरीरोगाहणा ज० अंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उ०वि अं० असं०भागं, मसूरचंदसंठिया चत्तारि, लेस्साओणो, सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णोसम्मामिच्छादिट्ठी, णोणाणी, अन्नाणी दो अन्नाणा नियम, णो मणजोगी, णो वइजोगी, कायजोगी उवओगो दुविहोवि, चत्तारि सन्नाओ चत्तारि कसाया, एगेफासिंदिए पन्नत्ते, तिन्नि समुग्घाया, वेदणा दुविहा, णो इत्थिवेदगा, णो पुरिसवेदगा, नपुंसगवेदगा, ठितीए ज० अंतो०, उ० बावीसं वाससहस्साई, अज्झवसाणा पसत्थावि अपसत्थावि, अणुबंधो जहा ठिती १,५सेणं भंते! पुढविकाइए पुणरवि पुढविकाइएत्ति केवतियं कालं सेवेजा?, के० कालं गतिरागतिं करेजा?, गोयमा! भवादेसेणंज० दो भवग्गहणाई, उ० असंखेल्जाइंभवग्ग०,कालादेसेणंज० दो अंतोमुहुत्ता, उ० असंखेज्जं कालं एवतियं जाव करेजा 1,6 सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो ज० अंतोमुहुत्तठितीएसु उ० वि अंतो० एवं चेव वत्तव्वया निरवसेसा 2,7 सोचेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नोज० बावीसवाससहस्सट्ठितीएसुउ०वि बावीसवास० // 1371 //