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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1363 // 24 शतके उद्देशकः 2 सूत्रम् 698 असुराणामुत्पादः उव०?, गोयमा! संखेजवासाउय जाव उव० असंखेज वासा० जाव उवव०,५ असंखेन्जवासाउ० सन्निपंचि० तिरि० जो भंते! जे भविए असुरकु० उवव० से णं भंते! केवइकालट्ठितीएसु उववजेजा?, गोयमा! ज० दसवाससहस्सद्वितीएसु उववजिजा, उ० तिपलिओवमद्वितीएसु उव०?,६ ते णं भंते! जीवा एगसमएणं पुच्छा, गोयमा! ज० एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उ० संखेज्जा उवव० वयरोसभनारायसंघयणी ओगाहणा ज० धणुपुहुत्तं, उ० छ गाउयाइंसमचउरंससंठाणसंठिया प०, चत्तारिलेस्साओ आदिल्लाओ, णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी णो णाणी, अन्नाणी नियमं दुअन्नाणी मतिअन्नाणी सुयअन्नाणी य, जोगो तिविहोवि, उवओगो दुविहोवि, चत्तारि सन्नाओ चत्तारि कसाया, पंच इंदिया, तिन्नि समुग्घाया आदिल्लगा, समोहयावि मरंति असमोहयावि मरंति, वेदणा दुविहावि, सायावेयगा असायावेयगा, वेदो दुविहोवि इत्थिवेयगावि पुरिसवेयगावि, णो नपुंसगवेदगा ठिती ज० साइरेगा पुव्वकोडी, उ० तिन्नि पलिओवमाइं अज्झवसाणा पसत्थावि अप्प०वि अणुबंधो जहेव ठिती कायसंवेहो भवादेसेणं दो भवग्गहणाई काला० ज० सातिरेगा पुव्वकोडी दसहि वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उ० छप्पलिओवमाई एवतियं जावकरेजा 1, 7 सोचेवजहन्नकालट्ठितीयएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया नवरं असुरकुमारद्वितीति संवेहं च जाणेजा 2,8 सोचेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो ज० तिपलिओवमद्वितीएसु, उ०वि तिपलि० उवव० एस चेव वत्तव्वया, नवरं ठिती से ज० तिन्नि पलिओवमाइं, उ०वि तिन्नि पलि० एवं अणुबंधोवि, कालादे० ज० छप्पलिओवमाई, उ०वि छप्पलि. एवतियं सेसंतंचेव ३,९सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ ज० दसवाससहस्सट्टितीएसु, उ० सातिरेगपुव्वकोडी आउ० अप्प० उवव०,१० तेणं भंते! अवसेसंतंचेव जाव भवादेसोत्ति, नवरं ओगाहणा ज० धणुहपुहत्तं, उ० सातिरेगंधणुसहस्सं, ठिती ज० सातिरेगा पुव्वकोडी, उ.वि सातिरेगा पुव्वकोडी एवं अणुबंधोवि, कालादेसेएणं ज० सातिरेगा पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उ० सातिरेगाओ // 1363 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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