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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1358 // 24 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 696 मनुष्येभ्य उत्पादः सागरोवमाइंचउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाइं एवतियं जाव करेज्जा 3, 95 सो चेव अप्पणा जहन्नकालट्ठितीओ जाओ एस चेव वत्तव्वया नवरं इमाइं पंच नाणत्ताई सरीरोगाहणा ज० अंगुलपुहुत्तं, उ०वि अंतिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणाई भयणाए पंच समुग्घाया आदिल्ला ठिती अणुबंधो य ज० मासपुहुत्तं, उ०वि मास० सेसं तं चेव जाव भवादेसोत्ति, कालादेसेणं ज० दसवाससहस्साई मासपुहुत्तमब्भहियाई, उ० चत्तारि सागरोवमाइंचउहिंमासपुहुत्तेहिं अब्भ० एवतियंजाव करेजा 4 / 96 सोचेवजहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो एस चेव वत्तव्वया चउत्थगमगसरिसा णेयव्वा नवरं काला० ज० दसवाससहस्साई मासपु०ब्भहियाई, उ० चत्तालीसं वाससहस्साइंचउहि मासपुहुत्तेहिं अब्भ० ए० जाव क०५।९७ सोचेव उक्कोसकालट्टितीएसु उववन्नो एस चेव गमगो नवरं काला० ज० सागरोवमं मासपु०न्भहियं, उ० चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं मासपुहुत्तेहिं अब्भ० ए० जाव क०६। 98 सो चेव अप्पणा उक्कोसकालहितीओजाओसोचेव पढमगमओणेयव्वोनवरं सरीरोगाहणाज० पंचधणुसयाई, उ०विपंचध०, ठिती ज० पुव्वकोडी, उ.विपु० एवं अणुबंधोवि, काला० ज० पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया, उ० चत्तारि सागरोवमाइंचउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई ए० कालं जाव क०७। 99 सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो सच्चेव सत्तमगमगवत्तव्वया नवरं काला० ज० पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भ०, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहिं अब्भहियाओ ए० कालं जाव क०८। 100 सोचेव उक्कोसकालट्ठितीएसुउववन्नो साचेव सत्तमगमगवत्तव्वया नवरं काला० ज० सागरोवमं पुव्वकोडीए अब्भहियं, उ० चत्तारि सागरोवमाइंचउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ० ए० कालं जाव क०९॥सूत्रम् 696 // 101 प०सं०वासाउयसन्निमणुस्से णं भंते! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए नेरइएसुजाव उववजित्तए से णं भंते! केवति जाव उववज्जेज्जा?, गोयमा! ज० सागरोवमट्टितीएसु, उ० तिसागरोवमट्टितीएसु उव०, 102 ते णं भंते! सोचेव रयणप्पभपुढविगमओ // 1358 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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