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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1351 // 24 शतके उद्देशकः 1 सूत्रम् 694 सज्ञयुत्पादः सोचेवगमओनवरं इमाई अट्ठणाणत्ताई-सरीरोगाहणाज० अंगुलस्स असंखेजइभाग, उ० धणुहपुहत्तं, लेस्साओ तिन्नि आदिल्लाओ, णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छादिट्ठी, णोणाणी दो अन्नाणा णियम, समुग्घाया आदिल्ला तिन्नि, आउं अज्झवसाणा अणुबंधो यजहेव असन्नीणं अवसेसंजहा पढमगमए जाव कालादेसेणंज० दसवासहस्साइं अंतोन्भहियाई, उ० चत्तारि सागरोवमाई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भ० ए० कालं जाव क० 4, 66 सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो ज० दसवाससहस्सट्ठितीएसु, उ०वि दसवा० उव०, तेणं भंते! एवं सोचेव चउत्थो गमओ निरवसेसोभा० जावकालादेसेणंज० दसवाससहस्साई अंतोन्महियाई, उ० चत्तालीसंवाससहस्साइंचउहिं अंतोमुत्तेहिं अब्भ० ए० जावक०५।६७ सोचेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नोज० सागरोवमट्ठितीएसु उव०, उ०वि साग० उव० ते णं भंते! एवं सो चेव चउत्थो गमओ निरवसेसो भा० जाव कालादेसेणं ज० सागरोवमं अंतो०न्भहियं, उ० चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भ० ए० जाव करेजा 6 / 68 उक्कोसकालट्ठितीयप०सं० जाव ति जोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभापु०ने० उववजित्तए से णं भंते! केवतिकालट्ठितीएसु उव०?, गोयमा! ज० दसवाससहस्सद्वितीएसु, उ० सागरोवमद्वितीएसु, उव०,६९ ते णं भंते! जीवा अवसेसो परमाणादीओ भवाएसपज्जवसाणो एएसि चेव पढमगमओणेयव्वो नवरं ठिती ज० पुव्वकोडी, उ.विपुव्वकोडी, एवं अणुबंधोवि, सेसंतंचेव, कालादेसेणंज० पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भ०, उ० चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भ० ए० कालं जाव क०७। 70 सो चेव जहन्नकालट्ठितीएसु उववन्नो ज० दसवाससहस्सद्वितीएसु, उ०वि दसवा० उव०७१ ते णं भंते! जीवा सो चेव सत्तमो गमओ निरवसेसो भा० जाव भवादेसोत्ति, काला० ज० पुव्वकोडी दसहि वाससहस्सेहिं अब्भ०, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहिआओ ए. जाव क०, 72 उक्कोसकालद्वितीयपज्जत्तजाव तिजोणिए णं भंते! जे भविए उक्कोसकालट्ठितीय जाव उववजित्तए से णं भंते! 8 // 1351 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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