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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1350 // 24 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 694 सजयुत्पादः जहेव असन्नी, 57 तेसि णं भंते! जीवाणं सरीरगा किंसंघयणी प०?, गोयमा! छव्विहसंघयणी प०, तं० वइरोसभनारायसं० उसभनारायसं० जाव छेवट्ठसं०, सरीरोगाहणा जहेव असन्नीणं ज० अंगुलस्स असंखेजइभाग, उ० जोयणसहस्सं, 58 तेसिणंभंते! जीवाणं सरीरगा किंसंठिया प०?, गोयमा! छव्विहसंठिया प०, तंजहा-समचउरंस० निग्गोह० जावहुंडा, ५९तेसिणं भंते! जीवाणं कति लेस्साओ प०?, गोयमा! छल्लेसाओ पन्नत्ताओ, तंजहा- कण्हलेस्सा जाव सुक्कलेस्सा, दिट्ठी तिविहावि तिन्नि नाणा तिन्नि अन्नाणा भयणाए जोगो तिविहोवि, सेसंजहा असन्नीणंजाव अणुबंधो, नवरं पंच समुग्घाया प० तं० आदिल्लगा, वेदो तिविहोवि, अवसेसंतंचेव जाव 60 सेणंभंते! पज्जत्तसंखेजवासाउय जाव ति जोणिए रयणप्पभाजाव करेजा?, गोयमा! भवादेसेणंज० दो भवग्गहणाई, उ० अट्ठ भवग्गहणाई, कालादेसेणं ज० दसवाससहस्साई अंतो०भहियाई, उ० चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अब्भहियाई एवतियं कालं सेवेजा जाव करेज्जा 1 / 61 पज्जत्तसंखेज जाव जे भविए जहन्नकालजाव से णं भंते! केवतियकालठितीएसु उववज्जेज्जा?, गो०! जह० दसवा० ठितीएसु, उ०वि दसवा० जाव उव०,६२ ते णं भंते जीवा एवं सो चेव पढमो गमओ निरवसेसो भा० जाव कालादेसेणं ज० दसवाससहस्साई अंतोब्भहियाई, उ० चत्तारि पुव्वकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ ए० कालं से० ए० कालं गतिरागतिं क० 2, 63 सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववन्नो ज० सागरोवमट्ठितीएसु, उ०विसाग० उव०, अवसेसे परिमाणादीओ भवादेसपज्जवसाणो सोचेव पढमगमोणेयव्वोजाव कालादेसेणं ज० सागरोवमं अंतोन्भहियं, उ० चत्तारि सागरोवमाइं चउहि पुव्वकोडीहिं अब्भ० ए० कालं सेविजा जावकरेजा 3, 64 जहन्नकालट्ठितीयपज्जत्तसंखेज्जवासाउयसन्निपंचिं०जोणिए णं भंते! जे भविए रयणप्पभपुढविजाव उववज्जित्तए से णं भंते! केवतिकालट्टितीएसु उव०?, गोयमा! ज० दसवाससहस्सट्टितीएसु, उ० सागरोवमट्टितीएसु उव०, 65 ते णं भंते! जीवा अवसेसो / / 1350 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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