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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1343 // 880888888888880000 24 शतके उद्देशकः 1 सूत्रम् 693 असज्ञिपयन्तोत्पादः ॥अथ चतुर्विंशंशतकम् // ॥चतुर्विंशशतके प्रथमोद्देशकः॥ व्याख्यातं त्रयोविंशंशतम्, अथावसरायातं चतुर्विंशं शतं व्याख्यायते, तस्य चादावेवेदं सर्वोद्देशकद्वारसङ्गहगाथाद्वयं उववायपरीमाणं संघयणुच्चत्तमेव संठाणं / लेस्सा दिट्ठीणाणे अन्नाणे जोग उवओगे॥१॥सन्नाकसायइंदियसमुग्घाया वेदणा यवेदेय। आउं अज्झवसाणा अणुबंधो कायसंवेहो ॥२॥जीवपदेजीवपदे जीवाणं दंडगंमि उद्देसो। चउवीसतिमंमिसए चउव्वीसं होंति उद्देसा // 3 // १रायगिहेजाव एवं वयासी-णेरइयाणंभंते! कओहिंतो उववखंति किं नेरइएहितो उव०, तिरिक्खजोणिएहितोउव०, मणुस्सेहितो उव०, देवेहिंतो उव०?, गोयमा! णो नेरइएहिंतो उव०, तिरिक्खजो०वि उव०, मणु तोवि उव०, णो देवेहिंतो उव०, 2 जइ तिरिक्ख हिंतो उव० किं एगिदियतिरिक्ख०हिंतो उव० बेइंदियतिरिक्खजोणिय० तेइंदियतिरिक्खजोणिय० चउरिंदियतिरिक्खजोणिय० पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उव०?, गोयमा! नो एगिदियतिरि हितो उव०, णो बेंदिय०, णो तेइंदिय०, णो चउरिदिय०, पंचिंदियतिरि०हिंतो उव०, 3 जड़ पंचिंदियतिरि०हिंतो उव०?, किं! सन्निपंचिंदियतिरि०हिंतो उव०, असन्नीपंचिंदियतिरि०हिंतो उव०?, गोयमा! सन्निपंचिंदियतिरि०हिंतो उव०, असन्निपंचिंदियतिरि०हिंतोवि उववजंति, 4 जड़ सन्निपंचिंदियतिरि हितो उव० किं जलचरेहिंतो उववजंति, थलचरेहिंतो उव०, खहचरेहितो उव०?, गोयमा! जलचरेहिंतो उव०, थलचरेहितोवि उव०, खहचरेहितोवि उव०,५जइ जलचरथलचरखहचरेहिंतो उव० किं पज्जत्तएहिंतो उव०, अपज्जत्तएहिंतो उव०?, गोयमा! प०हिंतो उव०, णो अप०हिंतो उव०, 6 पञ्जत्ताअसन्निपंचिं०जोणिए णं भंते! जे भविए नेरइएसु उववजित्तए से णं भंते!
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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