________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ २०शतके उद्देशकः९ सूत्रम् 683-684 जङ्घाविद्या // 1323 // चारणा: णं इओ एगेणं उप्पाएणं रुयगवरे दीवे समोसरणं करेति रुयग०२ तहिं चेइयाई वंदइ तहिं चे० 2 तओ पडिनियत्तमाणे बितिएणं उप्पाएणं नंदीसरवरदीवे समोसरणं करेति नंदी०२ तहिं चे० व० तहिं चे० वं० 2 इहमागच्छइ 2 इहं चे० वं०, जं०णस्सणं गोयमा! तिरियं एवतिए गइविसए पं०।९०णस्सणं भंते! उ8 के० गतिवि०प०?, गोयमा! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं पंडगवणे समोसरणं क० समो०२ तहिं चे०व० तहिंचे०२ ततो पडिनियत्तमाणे बितिएणं उप्पाएणं नंदणवणे समोसरणं करेति नंदणवणे 2 तहिंचे वं० तहिं 2 इह आग० 2 इह चे० वंदति, जं०णस्स णं गोयमा! उर्ल्ड एवतिए गतिविसए पं०, से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्वंते कालं करेइ नत्थि तस्स आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स आलोपडि० कालं क० अत्थि तस्स आ०, सेवं भंते! 2! जाव विहरइ॥ सूत्रम् 684 // 20-9 // कइ ण मित्यादि, तत्र चरणं गमनमतिशयवदाकाश एषामस्तीति चारणाः विज्जाचारण त्ति विद्या श्रुतं तच्च पूर्वगतं तत्कृतोपकाराश्चारणा विद्याचारणाः, जंघाचारण त्तिजङ्घाव्यापारकृतोपकाराश्चारणा जङ्घाचारणाः, इहार्थे गाथा:- अइसयचरणसमत्था जंघाविजाहिं चारणा मुणओ। जंघाहिं जाइ पढमो निस्सं काउं रविकरेवि॥१॥ एगुप्पाएण तओ रुयगवरंमि उ तओ पडिनियत्तो। बीएणं नंदीसरमिहं तओ एइ तइएणं // 2 // पढमेणं पंडगवणं बीउप्पारण णंदणं एइ। तइउप्पाएण तओ इह जंघाचारणो एइ॥ 3 // पढमेण माणुसोत्तरनगं स नंदिस्सरं बिईएणं। एइ तओ तइएणं कयचेइयवंदणो इहयं // 4 // पढमेण नंदणवणं बीउप्पाएण 0 अतिशयेन चरणसमर्था जङ्घाविद्याभ्यां चारणा मुनयः / जङ्घाभ्यां याति प्रथमो निश्रीकृत्य रविकरानपि // 1 // एकोत्पादेन ततो रुचकवरं ततः प्रतिनिवृत्तो द्वितीयेन नन्दीश्वरमिह तत आगच्छति तृतीयेन // 2 // प्रथमेन पण्डकवनं द्वितीयोत्पादेन नन्दनमेति तृतीयोत्पादेन तत इहायाति जङ्घाचारणः // 3 // प्रथमेन मानुषोत्तरनगं 3 द्वितीयेन नन्दीश्वरं स एति / ततस्तृतीयेनेहैति कृतचैत्यवन्दनः // 4 // प्रथमेन नन्दनवनं द्वितीयोत्पादेन . // 1323 //