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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1322 // 20 शतके उद्देशकः 9 सूत्रम् 683-684 जङ्घाविद्या चारणा: लद्धीनामं लद्धी समुप्पजइ, से तेणटेणं जाव विजाचार०, 3 विजाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गती कहं सीहे गतिविसए प०?, गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे 2 जाव किंचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं देवेणं महड्डीए जाव महेसक्खे जाव इणामेवत्तिकट्ट केवलकप्पं जंबुद्दीवं 2 तिहिं अच्छरानिवाएहिं तिक्खुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हव्वमागच्छेज्जा, विज्जाचारणस्स णं गोयमा! तहा सीहा गती तहा सीहे गतिविसए प० / 4 विज्जाचारणस्स णं भंते! तिरियं केवतियं गतिविसए प०?, गो०! से णं इओ एगेणं उप्पाएणं माणुसुत्तरे पव्वए समोसरणं करेति माणु० 2 तहिं चेइयाई वंदति तहिं 2 बितिएणं उप्पाएणं नंदीसरवरे दीवे समोसरणं करेति नंदीस० 2 तहिं चेइयाई वंदति तहिं० 2 तओपडिनियत्तति 2 इहमागच्छइ 2 इह चेइयाई वंदति / विजाचारणस्सणं गो०! तिरियं एवतिए गतिविसए प०,५ विजाचारणस्सणं भंते! उडे केवतिए गतिविसए प०?, गोयमा! सेणं इओ एगेणं उप्पाएणं नंदणवणे समोसरणं करेइ नंद० 2 तहिं चेइयाई वंदति तहिं०२ बितिएणं उप्पाएणं पंडगवणे समोसरणं करेइ पंडग०२ तहिं चेइयाइं वंदइ तहिं चेइयाइं वं० 2 तओ पडिनियत्तति तओ० 2 इहमागच्छइ 2 इहं चेइयाईवं० 2 विजाचारणस्सणंगोयमा! उढे एवतिए गतिविसए प०, सेणं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्वंते कालं करेति नत्थि तस्स आराहणा, सेणं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिक्कंते कालं करेति अत्थि तस्स आराहणा ।सूत्रम् 683 // ६से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ जंघाचारणे२?, गोयमा! तस्सणं अट्ठमंअट्टमेणं अनिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं अप्पाणं भावेमाणस्स जंघाचारणलद्धी नाम लद्धी समुप्पजति, से तेणटेणं जाव जंघा०२, जंघाचारणस्स णं भंते! कहं सीहा गति कहं सीहे गतिविसए प०?, 7 गोयमा! अयन्नं जंबुद्दीवे 2 एवं जहेव विजाचारणस्स नवरं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टित्ताणं हव्वमागच्छेजा जंघा०णस्सणं गोयमा! तहा सीहा गती तहा सीहे गतिविसए प० सेसंतंचेव। 8 जंघा०णस्सणं भंते! तिरियं केवतिए गतिविसएप०?, गोयमा! से
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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