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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1313 // णादिति, एवं क्षेत्रपरमाणुराकाशप्रदेशः, कालपरमाणुः समयः, भावपरमाणुः परमाणुरेव वर्णादिभावानांप्राधान्यविवक्षणात् सर्वजघन्यकालत्वादिष, चउविहे त्ति एकोऽपि द्रव्यपरमाणुर्विवक्षया चतुःस्वभावः अच्छेज्ज त्ति छेद्यः शस्त्रादिना लतादिवत्तन्निषेधादच्छेद्यः अभेज त्ति भेद्यः शूच्यादिना चर्मवत्तन्निषेधादभेद्यः अडज्झे त्ति अदाह्योऽग्निना सूक्ष्मत्वात्, अत एवाग्राह्यो हस्तादिना, अणद्धे त्ति समसङ्घयावयवाभावात् अमज्झे त्ति विषमसङ्घयावयवाभावात् अपएसे त्ति निरंशोऽवयवाभावात् अविभाइमे त्ति अविभागेन निर्वृत्तोऽविभागिम एकरूप इत्यर्थः विभाजयितुमशक्यो वेत्यर्थः॥१२१३-१४ / / / 670 // विंशतितमशते पञ्चमः // 20-5 // 20 शतके उद्देशकः६ सूत्रम् 671 | पृथ्व्यादीनां पूर्वपश्चादुत्पादाहारी ॥विंशतितमशतके षष्ठोद्देशकः॥ पञ्चमे पुद्गलपरिणाम उक्तः, षष्ठे तु पृथिव्यादिजीवपरिणामोऽभिधीयत इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रं 1 पुढविक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए समोहणित्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! किं पुब्विं उववज्जित्ता पच्छा आहारेज्जा, पुव्विं आहारित्ता पच्छा उववजेजा?, गोयमा! पुव्विं वा उत्ता एवं जहा सत्तरसमसए छटुद्देसे जाव से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चइ पुग्विंवा जाव उज्जा नवरंतहिं संपाउणेज्जा इमेहिं आहारो भन्नति सेसंतं चेव। 2 पुढविक्काइएणं भंते! इमीसे रयणप्पभाए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए जे भविए ईसाणे कप्पे पुढविक्काइयत्ताए उववजित्तए एवं चेव एवं जावईसीपब्भाराए उववाएयव्वो। 3 पुढविकाइएणं भंते! सक्करप्पभाए वालुयप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहते 2 जे भविए सोहम्मे जावईराए एवं एतेण कमेणं जाव तमाए अहेसत्तमाए य पुढवीए अंतरासमोहए समाणे // 1313 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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