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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1310 // देसे उ०, देसे निद्धे देसे लु०, एतेवि सोलस भंगा कायव्वा, सव्वेऽवि ते चउसद्धिं भंगा कक्खडमउएहिं एगत्तएहि, ताहे कक्खडेणं 20 शतके एगत्तएणं मउएणं पुहत्तेणं एते चउसद्धिं भंगा कायव्वा, ताहे कक्खडेणं पुहत्तएणं मउएणं एगत्तएणं चउसद्धिं भंगा कायव्वा, ताहे उद्देशक:५ सूत्रम् 669 एतेहिं चेव दोहिवि पुहुत्तेहिं चउसद्धिं भंगा कायव्वा जाव देसा कक्खडा देसा मउया, देसा गरुया, देसा लहुया, देसा सीया देसा बादरस्कन्धे उसिणा, देसा निद्धा देसा लुक्खा, एसो अपच्छिमो भंगो, सव्वेते अट्ठफासे दो छप्पन्ना भंगसया भवंति / एवं एते बादरपरिणए वर्णादि परिणाम: अणंतपएसिए खंधे सव्वेसुसंजोएसुबारस छन्नउया भंगसया भवंति // सूत्रम् 669 // सूत्रम् 670 12 कइविहे भंते! परमाणु पं०?, गोयमा! चउब्विहे परमाणु प० तं० दव्वपरमाणू खेत्तपरमाणू कालपरमाणू भावपरमाणू, 13 परमाणु प्रकाराः दव्वप० णं भंते! कइविहे प०?, गोयमा! चउविहे प० तं० अच्छेज्जे अभेजे अडज्झे अगेज्झे, 14 खेत्तप० णं भंते! क० प०?, गोयमा! चउव्विहे प० त० अणद्धे अमज्झे अपदेसे अविभाइमे, 15 कालपरमाणू पुच्छा, गोयमा! चउव्विहे प० तं० अवन्ने अगंधे अरसे अफासे, 16 भावप० णं भंते! क० प०?, गोयमा! चउव्विहे प० तं० वनमंते गंधमंते रसमंते फासमंते। सेवं भंते शत्ति जाव विहरति ॥सूत्रम् 670 // 20-5 // बायरपरिणए ण मित्यादि, सर्व एव कर्कशो गुरुः शीतः स्निग्धश्च, एकदैवाविरुद्धानां स्पर्शानां सम्भवादित्येको भङ्गः, चतुर्थपदव्यत्यये द्वितीयः, एवमेत एकादिपदव्यभिचारेण षोडशभङ्गाः। पंचफासे इत्यादि, कर्कशगुरुशीतैः स्निग्धरुक्षयोरेकत्वानेकत्वकृता चतुर्भङ्गी लब्धा, एषैव च कक्कर्शगुरूष्णैर्लभ्यत इत्येवमष्टौ, एते चाष्टौ कळशगुरूभ्याम्, एवमन्ये चल कळशलघुभ्याम्, एवमेते षोडश कर्कशपदेन लब्धा एतानेव च मृदुपदं लभत इत्येवं द्वात्रिंशत्, इयं च द्वात्रिंशत् स्निग्धरूक्षयोरेकत्वादिना लब्धा, अन्या च द्वात्रिंशच्छीतोष्णयोरन्या च गुरुलध्वोरन्या च कर्कशमृद्वोरित्येवं सर्व एवैते मीलिता // 1310 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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