________________ परिणामं परिणमति?,गोयमा! पंचवनं पंचरसंदुगंधं अट्ठफासं परिणामं परिणमती'त्यादि, व्याख्या चास्य पूर्ववदेवेति // 2 // // 666 // विंशतितमशते तृतीयः / / 20-3 // श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1295 // 20 शतके उद्देशकः४ सूत्रम् 667 इन्द्रियोपचयः उद्देशक:५ सूत्रम् 668 परमाण्वादिवर्णादिः ॥विंशतितमशतके चतुर्थोद्देशकः॥ तृतीये परिणाम उक्तश्चतुर्थे तु परिणामाधिकारादिन्द्रियोपचयलक्षणः परिणाम एवोच्यत इत्येवंसम्बद्धस्येदमादिसूत्रं कइविहे णं भंते! इंदियउवचए पन्नत्ते?, गोयमा! पंचविहे इंदिययोवचए प० तं० सोइंदियउवचए एवं बितिओ इंदियउद्देसओ निरवसेसो भाणियव्वो जहा पन्नवणाए। सेवं भंते! रत्ति भगवं गोयमेजाव विहरति ।।सूत्रम् 667 // 20-4 // कइ त्यादि, ‘एवं बि. इंदियउ०' इत्यादि यथा प्रज्ञापनायां पञ्चदशस्येन्द्रियपदस्य द्वितीय उद्देशकस्तथाऽयं वाच्यः, स चैवं 'सोइंदिओवचए चक्खिंदिओ० घाणिंदिओ० रसणिंदिओ० फासिंदिओ०'इत्यादि॥६६७॥ विंशतितमशते चतुर्थः // 20 4 // ॥विंशतितमशतकेपञ्चमोद्देशकः॥ चतुर्थे इन्द्रियोपचय उक्तः, सच परमाणुभिरिति पञ्चमे परमाणुस्वरूपमुच्यत इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रं १परमाणुपोग्गलेणं भंते! कतिवन्ने कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पन्नत्ते?, गोयमा! एगवन्ने एगगंधे एगरसे दुफासे पन्नत्ते, तंजहा- जइ एगवन्ने सिय कालए, सिय नीलए, सिय लोहिए, सिय हालिद्दे, सिय सुकिल्ले, जइ एगगंधे सिय सुब्भिगंधे सिय दुब्भिगंधे, जइ एगरसे सिय तित्ते, सिय कडुए, सिय कसाए, सिय अंबिले, सिय महुरे, जइ दुफासे सिय सीएय, निद्धेय १सिय सीए य, लुक्खे य // 1295 / /