________________ एकोनविंशतितमशते नवमः॥१९-९॥ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1287 // 19 शतके उद्देशकः 10 सूत्रम् 661 व्यन्तरादीनां समाहारादि ॥एकोनविंशशतके दशमोद्देशकः॥ नवमे करणमुक्तम्, दशमे तु व्यन्तराणामाहारकरणमभिधीयत इत्येवंसम्बद्धोऽयं वाणमंतराणं भंते! सव्वे समाहारा एवं जहा सोलसमसए दीवकुमारुद्देसओजाव अप्पड्डियत्ति सेवं भंते 2 / / सूत्रम् 661 // 1910 // सुगमो नवरंजाव अप्पड्डिय त्ति अनेनेदमुद्देशकान्तिमसूत्रं सूचितं-‘एएसिणं भंते! वाणमंतराणं कण्हलेसाणंजाव तेउलेसाण यकयरे 2 हिंतो अप्पड्डिया वा महड्डिया वा?,गोयमा! कण्हलेसेहिंतो नीललेस्सा महड्डिया जाव सव्वमहड्डिया तेऊलेस्स'त्ति // 661 // एकोनविंशतितमशते दशमः॥१९-१०॥एकोनविंशतितमशतं च वृत्तितः समाप्तमिति // 19 // एकोनविंशस्य शतस्य टीकामज्ञोऽप्यकार्ष सुखजनानुभावात् / चन्द्रोपलश्चन्द्रमरीचियोगादनम्बुवाहोऽपि पयः प्रसूते // 1 // // इति श्रीमच्चन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्ती एकोनविंशं शतकं समाप्तम् // // 1287 //