________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1276 // 19 शतके उद्देशक:३ सूत्रम् 653 पृथ्व्यादिशरीरमहत्तावेदने 30 पुढविकाइयस्सणं भंते! केमहालिया सरीरोगाहणा पन्नत्ता?, गोयमा! से जहानामए रन्नो चाउरंतचक्कवट्टिस्स वन्नगपेसिया तरुणी बलवंजुगवंजुवाणी अप्पायंका वन्नओजाव निउणसिप्पोवगया नवरं चम्मेठ्ठदुहणमुट्ठियसमाहयणिचियगत्तकाया न भण्णति सेसं तं चेव जाव निउणसिप्पोवगया तिक्खाए वयरामईए सण्हकरणीए तिक्खेणं वइरामएणं वट्टावरएणं एगं महं पुढविकाइयं जतुगोलासमाणंगहाय पडिसाहरिय 2 पडिसंखिविय 2 जाव इणामेवत्तिकट्टतिसत्तक्खुत्तो उप्पीसेज्जा तत्थ णंगोयमा! अत्थेगतिया पुढविक्काइया आलिद्धा अत्थेगइया पुढ० नो आ०, अत्थे० संघट्टि(ट्ठि)या अत्थे० नो सं०(ट्ठि)या, अत्थे० परियाविया अत्थे० नो परि०, अत्थे० उद्दविया अत्थे० नो उ०, अत्थे• पिट्ठा अत्थे० नो पिट्ठा, पुढविकाइयस्स णं गोयमा! एमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता॥३१ पुढविकाइएणं भंते! अक्वंते समाणे केरिसियं वेदणं पच्चणुब्भवमाणे विहरति?, गोयमा! से जहानामए-केइ पुरिसे तरुणे बलवंजाव निउणसिप्पोवगए एगंपुरिसं जुन्नं जराजजरियदेहं जावदुब्बलं किलंतंजमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहणिज्जा से णंगोयमा! पुरिसे तेणं पुरिसेणं जमलपाणिणा मुद्धाणंसि अभिहए समाणे केरिसियं वेदणं पञ्चणुब्भव०वि०?, अणिटुंसमणाउसो!, तस्स णं गोयमा! पुरिसस्स वेदणाहिंतो पुढविकाइए अक्कंते समाणे एत्तो अणिट्ठतरियं चेव अकंततरियं जाव अमणामतरियं चेव वेदणं पच्चणुब्भव० वि० / आउयाए णं भंते! संघट्टिए समाणे केरिसियं वेदणं पच्चणुब्भव० वि०?, गोयमा! जहा पुढविकाइए एवं चेव, एवं तेऊयाएवि, एवं वाऊयाएवि, एवं वणस्सइकाएविजाव विहरति सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 653 // 19-3 // पुढवी त्यादि, वन्नगपेसिय त्तिचन्दनपेषिका तरुणीति प्रवर्द्धमानवयाः बलवंति सामर्थ्यवती जुगवंति सुषमदुष्षमादिविशिष्टकालवती जुवाणि त्ति वयःप्राप्ताः अप्पायंक त्ति नीरोगा वन्नओ त्ति अनेनेदं सूचितं-'थिरग्गहत्था दढपाणिपायपिटुंतरोरुपरिणए'त्यादि, इह वर्णके चम्मेठ्ठदुहणे त्याद्यप्यधीतं तदिह न वाच्यम्, एतस्य विशेषणस्य स्त्रिया असम्भवात्, अत एवाह // 1276 //