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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1259 // 18 शतके उद्देशकः 9 सूत्रम् 642 भव्यद्रव्यनरकादि भवियदव्वपुढवि भ०२?, हंता अत्थि, से केण गो०! जे भविए तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पुढविकाइएसु उवव० से तेण० आउक्काइयवणस्सइकाइयाणं एवं चेव उववाओ, तेउवाऊबेइंदियतेइंदियचउरिंदियाण य जे भविए तिरिक्खजोणिए मणुस्से वा, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं जे भविए नेरइए वा तिरिक्खजोणिए वा मणुस्से वा देवे वा पंचिंदियतिरिक्खजोणिए वा, एवं मणुस्सावि, वाणमंतरजोइसियवेमाणियाणं जहा नेरइया॥३भवियदव्वनेरइयस्सणंभंते! केवतियंकालं ठितीप०?,गोयमा! ज० अंतो०, उ० पुव्वकोडी, 4 भवियदव्वअसुरकुमारस्सणंभंते! के कालं ठिती प०?, गोयमा! ज० अंतो०, उ० तिन्नि पलिओवमाई, एवं जाव थणियकुमारस्स / 5 भवियदव्वपुढविकाइयस्स णं पुच्छा, गोयमा! ज०अंतो०, उ० सातिरेगाई दो सागरोवमाई, एवं आउक्काइयस्सवि, तेउवाऊ जहा नेरइयस्स, वणस्सइकाइयस्स जहा पुढविकाइयस्स, बेइंदियस्स तेइं० चउरिं जहा नेरइयस्स, पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स ज० अंतो०, उ० तेत्तीसं सागरोवमाइं, एवं मणुस्सावि, वाणमंतरजोइसियवेमाणियस्स जहा असुरकुमारस्स / / सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 642 // 18-9 // रायगिहे इत्यादि, भवियदव्वनेरइय त्ति द्रव्यभूता नारका द्रव्यनारकाः, ते च भूतनारकपर्यायतयाऽपि भवन्तीति भव्यशब्देन / विशेषिताः,भव्याश्च ते द्रव्यनारकाश्चेति विग्रहः, ते चैकभविकबद्धायुष्काभिमुखनामगोत्रभेदा भवन्ति ॥१॥भवियदव्वनेरइयस्से त्यादि, अंतोमुहत्तं ति सज्ञिनमसज्ञिनं वा नरकगामिनमन्तर्मुहूर्तायुषमपेक्ष्यान्तर्मुहूर्त्तस्थितिरुक्ता // 2 // पुव्वकोडि त्ति मनुष्यं पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चं चाश्रित्येति भव्यद्रव्यासुरादीनामपि जघन्या स्थितिरित्थमेव, उत्कृष्टा तु तिन्नि पलिओवमाइंति उत्तरकुर्वादिमिथुनकनरादीनाश्रित्योक्ता, यतस्ते मृता देवेषूत्पद्यन्त इति॥ 3 -4 // द्रव्यपृथिवीकायिकस्य साइरेगाई दो सागरोवमाई ति ईशानदेवमाश्रित्योक्ता, द्रव्यतेजसो द्रव्यवायोश्च जहा नेरइयस्स त्ति अन्तर्मुहूर्तमेकाऽन्या च पूर्वकोटी, देवादीनां मिथुनकानां 259 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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