________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1246 // परत्वात्तदेव तत्राभ्युपगच्छति शेषरसवर्णादींस्तु सतोऽप्युपेक्षत इति, निच्छइयनयस्सत्ति नैश्चयिकनयस्य मतेन पञ्चवर्णादि- 18 शतके परमाणूनां तत्र विद्यमानत्वात् पञ्चवर्णादिरिति // 1 // // 630 // उद्देशक: 6 सूत्रम् 631 ५परमाणुपोग्गले णं भंते! कतिवन्ने जाव कतिफासे पन्नत्ते?, गोयमा! एगवन्ने एगगंधे एगरसे दुफासे पन्नत्ते // 6 दुपएसिए णं निश्चयेतराभ्यां भंते! खंधे कतिवन्ने पुच्छा, गोयमा! सिय एगवन्ने सिय दुवन्ने सिय एगगंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे सिय दुरसे सिय दुफासे सिय गोल्यादि वर्णादि तिफासे सिय चउफासे पन्नत्ते, एवं तिपएसिएवि, नवरं सिय एगवन्ने सिय दुवन्ने सिय तिवन्ने, एवं रसेसुवि, सेसंजहा दुपएसियस्स, परमाण्वादि वर्णादि एवं चउपएसिएवि नवरंसिय एगवन्ने जाव सिय चउवन्ने, एवं रसेसुविसेसंतंचेव, एवं पंचपएसिएवि, नवरं सिय एगवन्ने जाव सिय पंचवन्ने, एवं रसेसुवि गंधफासा तहेव, जहा पंचपएसिओ एवं जाव असंखेज्जपएसिओ॥७ सुहुमपरिणए णं भंते! अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने जहा पंचपएसिए तहेव निरवसेसं, बादरपरिणएणंभंते! अणंतपएसिए खंधे कतिवन्ने पुच्छा, गोयमा! सिय एगवन्ने जाव सिय पंचवन्ने सिय एगगंधे सिय दुगंधे सिय एगरसे जाव सिय पंचरसे सियचउफासेजाव सिय अट्ठफासे प०॥सेवं भंते! रत्ति॥ सूत्रम् 631 // 18-6 // परमाणुपोग्गले ण मित्यादि, इह च वर्णगन्धरसेषु पञ्च द्वौ पञ्च च विकल्पाः दुफासे त्ति स्निग्धरूक्षशीतोष्णस्पर्शानामन्यतराविरुद्धस्पर्शद्वययुक्त इत्यर्थः, इह च चत्वारो विकल्पः शीतस्निग्धयोःशीतरूक्षयोरुष्णस्निग्धयोरुष्णरूक्षयोश्चसम्बन्धादिति // 5 // दुपएसिए ण मित्यादि, सिय एगवन्ने त्ति द्वयोरपि प्रदेशयोरेकवर्णत्वात्, इह च पञ्च विकल्पाः , सिय दुवन्ने त्ति प्रतिप्रदेश वर्णान्तरभावात्, इह च दश विकल्पाः, एवं गन्धादिष्वपि, सिय दुफासे त्ति प्रदेशद्वयस्यापि शीतस्निग्धत्वादिभावात्, इहापित त एव चत्वारो विकल्पाः, सिय तिफासे त्ति इह चत्वारो विकल्पास्तत्र प्रदेशद्वयस्यापि शीतभावात्, एकस्य च तत्र स्निग्धभावात् // 1246 //