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________________ नामृजुविकुर्वणेच्छायामपि वङ्कविकुर्वणं भवति तन्मायामिथ्यात्वप्रत्ययकर्मप्रभावात्, अमायिसम्यग्दृष्टीनां तु यथेच्छं विकुर्खणा भवति तदार्जवोपेतसम्यक्त्वप्रत्ययकर्मवशादिति / / 7-8 // // 626 / / अष्टादशशते पञ्चमः / / 18-5 // श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1245 // 18 शतके उद्देशक:६ सूत्रम् 630 निश्चयेतराभ्यां गौल्यादिवर्णादि परमाण्वादिवर्णादि ॥अष्टादशशतके षष्ठोद्देशकः॥ पञ्चमोद्देशकेऽसुरादीनांसचेतनानामनेकस्वभावतोक्ता, षष्ठेतु गुडादीनामचेतनानांसचेतनानांच सोच्यत इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रं १फाणियगुले णं भंते! कतिवन्ने कतिगंधे कतिरसे कतिफासे पण्णत्ते?, गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं० निच्छइयनए य वावहारियनए य वावहारियनयस्स गोड्डेफाणियगुले नेच्छइयनयस्स पंचवन्ने दुगंधे पंचरसे अट्ठफासे प०।२ भमरेणंभंते! कतिवन्ने? पुच्छा, गोयमा! एत्थ णं दो नया भवंति, तं० निच्छइयनए य वावहारियनए य, वाव्यनयस्स कालए भमरे नेव्यनयस्स पंचवन्ने जाव अट्ठफासे पं०।३सुयपिच्छे णं भंते! कतिवन्ने एवं चेव, नवरं वा यनयस्स नीलए सुयपिच्छे नेव्यनयस्स पंचवण्णे सेसंतंचेव, एवं एएणं अभिलावेणं लोहिया मंजिट्ठिया पीतिया हालिद्दा सुकिल्लए संखे सुन्भिगंधे कोटे दुब्भिगंधे मयगसरीरे तित्ते निंबे कडुया सुंठी कसाए कविढे अंबा अंबिलिया महुरे खंडे कक्खडे वइरे मउए नवणीए गरुए अए लहुए उलुयपत्ते सीए हिमे उसिणे अगणिकाए णिद्धे तेल्ले, 4 छारिया णं भंते! पुच्छा, गोयमा! एत्थ दो नया भवंति, तं०नि०यनए य वन्यनए य वन्यनयस्स लुक्खा छारिया नेच्छइयनयस्स पंचवन्ना जाव अट्ठफासा पन्नत्ता / / सूत्रम् 630 // फाणिए त्यादि, फाणियगुले णंति द्रवगुडः गोड्डेत्ति गौल्यंगौल्यरसोपेतं मधुररसोपेतमितियावत्, व्यवहारो हि लोकसंव्यवहार // 1245 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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