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________________ 18 शतके उद्देशकः५ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1244 // सूत्रम् 628-629 नारकयोर्महाल्पवेदनादि वेद्यमान पुरस्कृतायुषी ऋज्वीतरा वैक्रिया 5 नेरइएणं भंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जित्तए से णं भंते! कयरं आउयं पडिसंवेदेति?, गोयमा! नेरइयाउयं पडिसंवेदेति पंचिंदियतिरिक्खजोणियाउए से पुरओ कडे चिट्ठति, एवं मणुस्सेसुवि, नवरं मणुस्साउए से पुरओ कडे चिट्ठइ।६असुरकुमाराणंभंते! अणंतरं उव्वट्टित्ता जे भविए पुढविकाइएसु उववजित्तए पुच्छा,गो०! असुरकुमाराउयं पडिसंवेदेति पुढविकाइयाउए से पुरओ कडे चिट्ठइ, एवं जो जहिं भविओ उववज्जित्तए तस्स तं पुरओ कडं चिटुंति, जत्थ ठिओ तं पडिसंवेदेति जाव वेमाणिए, नवरं पुढविकाइए पुढविकाइएसु उववज्जति पुढविकाइयाउयं पडिसंवेएति अन्ने य से पुढविक्काइयाउए पुरओ कडे चिट्ठति एवं जाव मणुस्सो सट्ठाणे उववाएव्वो परट्ठाणे तहेव / / सूत्रम् 628 // दोभंते! असुरकुमारा एगंसि असुरकुमारावासंसि असुरकु०देवत्ताए उववन्ना तत्थणंएगे असुरकुमारे देवे उजुयं विउव्विस्सामीति उज्जुयं विउव्वइ वंकं विउव्विस्सामीति वंकं वि० जं जहा इच्छइ तंतहा वि० एगे असुरकुमारे देवे उज्जुयं विउव्वि० वंकं वि०, वंकं विउव्वि० उजुयं वि०, जं जहा इच्छति णो तंतहा विउव्वइ से कहमेयं भंते! एवं ?, गोयमा! असुरकुमारा देवा दुविहा पं०, तं०मायिमिच्छदिट्ठिउव० य अमायिसम्मट्ठिीउववन्नगा य, तत्थ णं जे से मायिमिच्छादिट्ठिउववन्नए असुरकुमारे देवे से णं उज्जुयं विउव्विस्सामीति वंकं विउव्वति जावणोतंतहा वि०, तत्थ णंजे से अमायिसम्मदिट्ठिउव० असुरकुमारे देवे से उज्जुयं विउ० जाव तंतहा विउव्वइ / 8 दोभंते! नागकुमारा एवं चेव एवं जाव थणिय० वाणमं० जोइसि० वेमाणिया एवं चेव ॥सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 629 // 18-5 // नेरइए ण मित्यादि, एतच्च व्यक्तमेव // 5 // // 628 // पूर्वमायुःप्रतिसंवेदनोक्ता, अथ तद्विशेषवक्तव्यतामाह दो भंते! असुरकुमारा इत्यादि, यच्चेह मायिमिथ्यादृष्टीनामसुरकुमारादी
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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