________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1243 // से वेउव्वियसरीरे तंचेव जावपडिरूवे?, गोयमा! से जहानामए- इहंमणुयलोगंसि दुवे पुरिसा भवंति-एगे पुरिसे अलंकियविभूसिए एगे पुरिसे अणलंकियवि०, एएसि णं गोयमा! दोण्हं पुरिसाणं कयरे पुरिसे पासा० जाव पडि० कयरे पुरिसे नो पासा. जाव नो पडि० जे वा से पुरिसे अलंकियवि० जे वा से पु० अणलंकियवि०?, भगवं! तत्थ जे से पु० अलंकियवि० से णं पुरिसे पासा० जाव पडिरूवे, तत्थ णं जे से पु० अणलंकियवि० से णं पु० नो पासाजाव नो पडिरूवे से तेणटेणं जाव नो पडि० / 2 दो भंते! नागकुमारा देवा एगंसि नागकुमारावासंसि एवं चेव एवं जाव थणियकुमारा वाणमंतरजोतिसिया वेमाणिया एवं चेव ॥सूत्रम् 626 // 1 दो भंते इत्यादि वेउब्वियसरीर त्ति विभूषितशरीराः॥१॥॥ 626 // अनन्तरमसुरकुमारादीनां विशेष उक्तः, अथ विशेषाधिकारादिदमाह ३दोभंते! नेरतिया एगंसि नेरतियावासंसि नेरतियत्ताए उववन्ना,तत्थ णं एगे नेरइए महाकम्मतराए चेव जाव महावेयणतराए चेव एगे ने० अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव से कहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! ने दुविहा प०० मायिमिच्छा दिट्टिउववन्नगा य अमायिसम्मदिट्ठिउव० य, तत्थ णं जेसे मायिमिच्छादिट्ठिउव० नेरइए सेणं महाकम्मतराए चेव जाव महावेय० चेव, तत्थणं जेसे अमायिसम्मदिट्ठिउव० नेरइए से णं अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेय० चेव, 4 दो भंते! असुरकुमारा एवं चेव एवं एगिंदियविगलिंदियवजंजाववेमाणिया।सूत्रम् 627 // दो भंते! नेरइए त्यादि, महाकम्मतराए चेव त्ति इह यावत्करणात् महाकिरियतराए चेव महासवतराए चेव त्ति दृश्यम्, व्याख्या चास्य प्राग्वत् / एगिदियविगलिंदियवजं त्ति इहैकेन्द्रियादिवर्जनमेतेषांमायिमिथ्यादृष्टित्वेनामायिसम्यग्दृष्टिविशेषणस्यायुज्यमानत्वादिति ॥३-४॥॥६२७॥प्राग्नारकादिवक्तव्यतोक्ता ते चायुष्कप्रतिसंवेदनावन्त इति तेषां तां निरूपयन्नाह 18 शतके उद्देशकः५ सूत्रम् 626 असुरादिप्रासादीयता सूत्रम् 627 नारकयोर्महाल्पवेदनादिवेद्यमान पुरस्कृतायुषी ऋज्वीतरा वैक्रिया // 1243 //