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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभयवृत्तियुतम् भाग-३ 18 शतके उद्देशकः 3 सूत्रम् 620 द्रव्यभाव // 1236 // बन्धी चाहारकत्वे सर्वत्रभावात्, लोमाहारप्रक्षेपाहारयोस्तु त्वग्मुखयोर्भाव एव भावात्, यदाह सरीरेणोयाहारो तयाय फासेण लोमआहारो। पक्खेवाहारो पुण कावलिओ होइ नायव्वो॥१॥॥६॥ मनुष्यसूत्रे तु सज्ञिभूता विशिष्टावधिज्ञान्यादयो गृह्यन्ते, येषां ते निर्जरापुद्गला ज्ञानविषयाः ।।७॥वेमानिकसूत्रे तु वैमानिका अमायिसम्यग्दृष्टय उपयुक्तास्तान जानन्ति ये विशिष्टावधयः, मायिमिथ्यादृष्टयस्तु न जानन्ति मिथ्यादृष्टित्वादेवेति // 8 // // 619 // अनन्तरं निर्जरापुद्गलाश्चिन्तितास्ते च बन्धे सति भवन्तीति बन्धं निरूपयन्नाह ९कतिविहे णं भन्ते! बंधे प०?, मागंदियपुत्ता, दुविहे प० तं०- दव्वबंधे य भावबंधे य, 10 दव्वबंधे णं भंते! कतिविहे प०?, मागं०! दुविहे प० तं० पओगबंधेय वीससाबंधेय, ११वीससाबंधेणंभंते! क० पं०?,मागंदियपुत्ता! दुविहे प०, तं०साइयवीससाबंधे य अणादीयवीस० य, 12 पयोगबंधे णं भंते! क. पं०, मागं० पुत्ता! दुविहे पं०, तं० सिढिलबंधणबन्धे यधणियबंधणबन्धे य, 13 भावबंधे णं भंते! क० पं०?, मागंदियपुत्ता! दुविहे पं० तं० मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य, 14 नेरइयाणं भंते! क० भावबंधे प०?, मागंदियपुत्ता! दुविहे भावबंधे पं० 20 मूलपगडिबंधे य उत्तरप० य, एवं जाव वेमाणियाणं, 15 नाणावरणिज्जस्स णं भंते! कम्मस्स क० भावबंधे प०?, मागंदिया! दुविहे भावबंधे प० तं० मूलपगडिबंधे य उत्तरप० य, 16 नेर० भंते! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स क० भावबंधे० प०?, मांगदियपुत्ता! दुविहे भावबंधे प० तं० मूलपगडिबंधे य उत्तरपयडि० एवं जाव वेमा०, जहा नाणावरणिज्जेणं दंडओ भणिओ एवं जाव अंतराइएणं भाणियव्वो।सूत्रम् 620 // कइविहे ण मित्यादि, दव्वबंधे यत्ति द्रव्यबन्ध आगमादिभेदादनेकविधः केवलमिहोभयव्यतिरिक्तो ग्राह्यः, स च द्रव्येण 0 कार्मणेनौजआहार: त्वचा स्पर्शेन च लोमाहारः / प्रक्षेपाहारः पुनः कावलिको भवति ज्ञातव्यः॥ 1 // // 1236 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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