________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1232 // 18 शतके उद्देशकः३ सूत्रम् 618 माकन्दिकाय श्रमणानां मिथ्यादुष्कृतं काउलेसे आऊकाइए काउलेसेहितो आउकाइएहितो अणंतरं उव्वट्टिता मा० वि० ल० मा० 2 केवलं बोहिं बुज्झति जाव अंतं क०?, हंता मागंदियपुत्ता! जाव अंतं क०।३ से नूणं भंते! काउलेस्से वणस्सइकाइए एवं चेव जाव अंतं क०, सेवं भंते रत्ति मागंदियपुत्ते अणगारे समणं भगवं महावीरं जाव नमंसित्ता जे० समणे निग्गंथे ते० उवागच्छति 2 समणे निग्गंथे एवं व०- एवं खलु अजो! काउलेस्से पुढविकाइए तहेव जाव अंतं करेति, एवं खलु अज्जो! काउलेस्से आउक्काइए जाव अंतं क०, एवं खलु अजो! काउलेस्से वणस्सइकाइए जाव अंतं क०, तए णं ते समणा निग्गंथा मागंदियपुत्तस्स अणगारस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्स एयमटुंनो सद्दहति 3 एयमटुं असद्दहमाणा 3 जे०स० भ० महावीरे ते० उवा०२ स० भ० महावीरं वं० न०२ एवं व०एवं खलु भंते! मागं० अणगारे अम्हं एवमाइक्खति जाव परूवेति- एवं खलु अजो! काउलेस्से पुढविकाइए जाव अंतं क०, एवं खलु अज्जो! काउलेस्से आउक्काइए जाव अंतं क०, एवं वणस्सइकाइएवि जाव अंतंक०, से कहमेयं भंते! एवं?, अज्जोत्ति समणे भगवं महावीरे ते समणे निग्गंथे आमंतित्ता एवं वयासी-जण्णं अज्जो! मागंदियपुत्ते अणगारे तुझे एवं आइक्खति जावपरूवेतिएवं खलु अज्जो! काउलेस्से पुढविकाइए जाव अंतं करेति, एवं खलु अजो! काउलेस्से आउकाइए जाव अंतं करेति, एवं खलु अजो! काउलेस्सेवणस्सइकाइएवि जाव अंतं करेति, सच्चेणं एसमट्टे, अहंपिणं अज्जो! एवमाइक्खामि 4 एवं खलु अजो! कण्हलेसे पुढ० कण्हलेसेहितो पुढविकाइएहितो जाव अंतं करेति एवं खलु अज्जो! नीललेस्से पुढविका० जाव अंतं करेति एवं काउलेस्सेवि जहा पुढविकाइए एवं आउकाइएवि एवं वणस्सइकाइएवि सच्चेणं एसमटे ॥सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति समणा निग्गंथा समणं भगवं महा०व० नम०२ जेणेव मागंदियपुत्ते अणगारे तेणेव उवाग०२मागंदियपुत्तं अणगारंवंदति नमं०२ एयमढेसम्मं विणएणं भुजो 2 खार्मेति ॥सूत्रम् 618 // // 1232 //