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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1220 // 18 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 616 जीवादीनां प्रथमचरमत्वे भावोसो तेण अपढमओ होइ / सेसेसु होइ पढमो अपत्तपुव्वेसुभावेसु॥१॥२० जीवेणं भंते! जीवभावेणं किं चरिमे अचरिमे?, गोयमा! नो चरिमे अचरिमे / 21 नेरइएणं भंते! नेरइयभावेणं पुच्छा, गोयमा! सिय चरिमे सिय अचरिमे, एवं जाव वे०, सिद्धे जहा जीवे / 22 जीवाणं पुच्छा, गोयमा! नो चरिमा अचरिमा, नेरइया चरिमावि अचरिमावि, एवं जाव वेमाणिया, सिद्धा जहा जीवा 1 // 23 आहारए सव्वत्थ एगत्तेणं सिय चरिमे सिय अचरिमे पुहुत्तेणं चरिमावि अचरिमावि अणाहारओजीवे सिद्धो य एगत्तेणवि पुहुत्तेणवि नो चरिमे अचरिमे, सेसट्ठाणेसु एगत्तपु० जहा आहारओ 2 // 24 भवसिद्धीओ जीवपदे एगत्तपपु० चरिमे नो अचरिमे, सेसट्ठाणेसु जहाआहारओ। अभवसिद्धीओ सव्वत्थ एगत्तपु० नो चरिमे अचरिमे, नोभवसिद्धीयनोअभवसिद्धीय जीवा सिद्धाय एगत्तपु० जहा अभवसिद्धीओ 3 // 25 सन्नी जहा आहारओ, एवं असन्नीवि, नोसन्नीनोअसन्नी जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमे, मणुस्सपदे चरमे एगत्तपु०४॥२६ सलेस्सोजाव सुक्कलेस्सोजहा आहारओ नवरंजस्स जा अत्थि, अलेस्सोजहा नोसन्नीनोअसन्नी 5 // 27 सम्मदिट्ठी जहा अणाहारओ, मिच्छादिट्ठी जहा आहारओ, सम्मामिच्छादिट्ठी एगिदियविगलिंदियवखं सिय चरिमे सिय अचरिमे, पुहुत्तेणं चरिमावि अचरिमावि६॥२८ संजओजीवो मणुस्सोय जहा आहारओ, अस्संजओऽवि तहेव, संजयासंजएवि तहेव, नवरं जस्स जं अत्थि, नोसंजयनोअसंजयनोसंजयासंजय जहा नोभवसिद्धीयनोअभवसिद्धीओ 7 // 29 सकसाई जाव लोभकसायी सव्वट्ठाणेसु जहा आहारओ, अकसायी जीवपदे सिद्धेय नो चरिमो अचरिमो, मणुस्सपदे सिय चरिमो सिय अचरिमो 8 // 30 णाणी जहा सम्मट्ठिी सव्वत्थ आभिणिबोहियनाणी जावमणपज्जवनाणी जहा आहारओ नवरंजस्सजं अत्थि केवलनाणी जहा नोसन्नीनोअसन्नी, अन्नाणी जाव विभंगनाणी जहा आहारओ 9 // 31 सजोगी जाव कायोजगी जहा आहारओ जस्स जो जोगो अत्थि अजोगी जहा नोसन्नीनोअसन्नी 10 // 32 सागारोवउत्तो अणागारोवउत्तो य जहा अणाहारओ 11 // 33 सवेदओ // 12 20 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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