________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ / / 1217 // देशेन समवहन्यमान ईलिकागत्या गच्छन्नित्यर्थः, पूर्वं सम्प्राप्य पुद्गलान् गृहीत्वा पश्चादुत्पद्यते सर्वात्मनोत्पादक्षेत्र आगच्छति, सव्वेणं समोहणमाणे त्ति गेन्दुकगत्या गच्छन्नित्यर्थः,पूर्वमुत्पद्य सर्वात्मनोत्पाददेशमासाद्य पश्चात् संपाउणेज्ज त्ति पुद्गलग्रहणं कुर्यादिति // 1 // // 604 // सप्तदशशते षष्ठः॥ 17-6 // शेषास्तु सुगमा एव // 17-(7-17) / 605-615 // तदेवं सप्तदशशतं वृत्तितः परिसमाप्तम् // 17 // शते सप्तदशे वृत्तिः, कृतेयं गुर्खनुग्रहात्। यदन्धो याति मार्गेण, सोऽनुभावोऽनुकर्षिणः॥१॥ 17 शतके उद्देशकः 6-17 सूत्रम् 604-615 पृथ्व्यादीनां संप्राप्त्युत्पादौ // इति श्रीमच्चन्द्रकुलनभोनभोमणिश्रीमदभयदेवाचार्यवर्यविहितविवरणयुतं श्रीमद्भगवतीवृत्तौ | सप्तदशं शतकं समाप्तम् // // 1217 //