________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1215 // 17 शतके उद्देशकः 6-17 सूत्रम् 604-615 पृथ्व्यादीनां संप्राप्त्युत्पादौ पुढविकाइओतहा आउकाइओविसव्वकप्पेसुजावईसिपब्भाराए तहेव उववाएयव्वो एवं जहारयणप्पभाआउकाइओ उववाइओ तहा जाव अहेसत्तमापुढविआउकाइओ उववाएयव्वो जाव ईसिपब्भाराए, सेवं भंते! 2 // सूत्रम् 606 // 17-8 // १आउकाइएणंभंते! सोहम्मे कप्पेसमोहए २जे भविए इमीसेरयणप्पभाए पुढवीएघणोदधिवलएसु आउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! सेसं तं चेव एवं जाव अहेसत्तमाए जहा सोहम्मआउक्काइओ एवं जाव ईसिपब्भाराआउक्काइओ जाव अहेसत्तमाए उववाएयव्वो, सेवं भंते! २॥सूत्रम् 607 // 17-9 // 1 वाउक्काइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउत्ताए उववञ्जित्तए से णं जहा पु०काइओ तहा वाउका०वि नवरं वाल्याणं चत्तारि समुग्घाया पं०, तं०- वेदणासमुग्घाए जाव वेउव्वियस०, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहणमाणे देसेण वासमो० सेसंतं चेव जाव अहेसत्तमाए समोहओईसिपब्भाराए उववाएयव्वो, सेवं भंते! २॥सूत्रम् 608 // 17-10 // 1 वाउक्काइए णं भंते! सोहम्मे कप्पे समोहए 2 जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणवाए तणुवाए घणवायवलएसु तणुपवायवलएसुवाउक्काइयत्ताए उववजेत्तए से णंभंते! सेसंतंचेव एवं जहा सोहम्मे वाउकाइओ सत्तसुवि पुढवीसु उववाइओ एवं जावईसिपन्भाराए वाउचाइओ अहेसत्तमाए जाव उववाएयव्वो, सेवं भंते! २॥सूत्रम् 609 // 17-11 // 1 एगिदियाणंभंते! सव्वे समाहरा सव्वे समसरीरा एवं जहा पढमसए बितियउद्देसए पुढविक्काइयाणं वत्तव्वया भणिया साचेव एगिंदियाणं इह भाणियव्वा जाव समाउया समोववन्नगा।२ एगिदिया णं भंते! कति लेस्साओ प०?, गोयमा! चत्तारि लेस्साओ पं०, तं०- कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। 3 एएसिणंभंते! एगिदियाणं कण्हलेस्साणंजाव विसेसाहिया वा?, गोयमा! सव्वत्थोवा एगिदियाणं तेउलेस्सा, काउलेस्सा अणंतगुणा, णीललेस्सा विसे०, कण्हलेसा विसे०।४ एएसिणंभंते! एगिदियाणं कण्हलेस्सा // 12