________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ 17 शतके उद्देशकः 4 सूत्रम् 601-602 प्राणातिपातादेः क्रिया: आत्मादि // 1212 // कृतत्वंदुःखादीनां एवं एतेवि पंच दंडगा 15 / 7 जंपएसन्नं भंते! जीवाणं पाणाइवाएणं कि० क० सा भंते! किं पुट्ठा कज्जति एवं तहेव दण्डओ एवं जाव परिग्गहेणं 20, एवं एए वीसंदंडगा।सूत्रम् 601 // 8 जीवाणंभंते! किं अत्तकडे दुक्खे परकडे दुक्खेतदुभयकडे दुक्खे?, गोयमा! अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे दुक्खे नो तदुभयकडे दुक्खे, एवं जाव वेमाणियाणं, 9 जीवा णं भंते! किं अत्तकडं दुक्खं वेदेति परकडं दुक्खं वे तदुभयकडं दुक्खं वे०?, गोयमा! अत्तकडं दुक्खं वे० नो परकडं दुक्खं वे० नो तदुभयकडं दुक्खं वे०, एवं जाव वेमा०। 10 जीवाणं भंते! किं अत्तकडा वेयणा परकडा वेयणा पुच्छा, गोयमा! अत्तकडा वे० णो परकडा वे० णो तदुभयकडावे. एवं जाव वेमा०,११ जीवाणंभंते! किं अत्तकडं वेदणं वेदेति परक० वे वे० तदुभयक० वे वे०?, गोयमा ! जीवा अत्तकडं वेय० वे० नो परक० नो तदुभय० एवं जाव वेमा०।सेवं भंते! रत्ति ॥सूत्रम् 602 // 17-4 // तेण मित्यादि, एवं जहा पढमसए छट्ठद्देसए त्ति अनेनेदं सूचितं 'सा भंते! किं ओगाढा कज्जइ अणोगाढा क.?, गोयमा! ओ० क. नो अणो क.' इत्यादि, व्याख्या चास्य पूर्ववत् // 1-2 // जं समयं ति यस्मिन् समये प्राणातिपातेन क्रिया कर्म क्रियते, इह स्थाने तस्मिन्निति वाक्यशेषो दृश्यः।। 5 // जं देसं ति यस्मिन् देशे क्षेत्रविभागे प्राणातिपातेन क्रिया क्रियते तस्मिन्निति वाक्यशेषोऽत्रापि दृश्यः।। 6 // जंपएसं ति यस्मिन् प्रदेशे लघुतमे क्षेत्रविभागे॥ 7 // // 601 // क्रिया प्रागुक्ता साच कर्म कर्म च दुःखहेतुत्वाहुःखमिति तन्निरूपणायाह- जीवाण मित्यादि दण्डकद्वयम् / कर्मजन्या च वेदना भवतीति तन्निरूपणाय दण्डकद्वयमाह जीवाण मित्यादि॥८-११॥॥६०२॥ सप्तदशशते चतुर्थः // 17-4 // 212 //