________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1203 // 17 शतके उद्देशकः 2 सूत्रम् 594 धर्माधर्मस्थितता सूत्रम् 595 बलत्वादी जीवजीवात्मनोशान्यमतं नेरइ० पु०?, 4 गोयमा! णेरड्या णोधम्मे ठिता अधम्मे ठिता' णोधम्माधम्मे ठिता, एवंजाव चउरिदियाणं, ५पंचिंदियतिरिक्खजो० पुच्छा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्ख जोणि नो धम्मे ठिया अधम्मे ठिया धम्माधम्मेवि ठिया, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइ० वेमाणि० जहा नेर०॥सूत्रम् 594 // से नूणं भंते! इत्यादि, धम्मे त्ति संयमे चक्किया केइ आसइत्तए व त्ति धर्मादौ शक्नुयात् कश्चिदासयितुं?, नायमर्थः समर्थो धर्मादेरमूर्त्तत्वात् मूर्ते एव चासनादिकरणस्य शक्यत्वादिति॥१॥ अथ धर्मस्थितत्वादिकं दण्डके निरूपयन्नाह जीवा ण मित्यादि व्यक्तम्, संयतादयः प्रागुपदर्शितास्ते च पण्डितादयो व्यपदिश्यन्ते॥२॥॥५९४ // अत्र चार्थेऽन्ययूथिकमतमुपदर्शयन्नाह ५अन्नउत्थियाणं भंते! एवमाइक्खंति जाव परूवेंति-एवं खलुसमणा पंडिया समणोवासया बालपंडिया जस्सणं एगपाणाएवि दंडे अणिक्खित्ते से णं एगंतबालेत्ति वत्तव्वं सिया, सेकहमेयं भंते! एवं?, गोयमा! जण्णं ते अन्नउत्थिया एवमाइक्खंति जाव वत्तव्वं सिया, जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमा०, अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि एवं खलु समणा पंडिया समणोवासगा बालपंडिया जस्स णं एगपाणाएवि दंडे निक्खित्ते से णं नो एगंतबालेति वत्तव्वं सिया॥ 6 जीवा णं भंते! किं बाला पंडिया बालपंडिया?, गोयमा! जीवा बालावि पंडियावि बालपंडियावि, 7 नेरइयाणं पुच्छा, गोयमा! नेरइया बाला, नो पंडिया नो बालपंडिया, एवं जाव चउरिदियाणं। 8 पंचिंदियतिरिक्ख० पुच्छा, गोयमा! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया बाला नो पंडिया बालपंडियावि, मणुस्सा जहा जीवा, वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा नो नेरइया।सूत्रम् 595 // अन्न इत्यादि, समणा पंडिया समणोवासया बालपंडिय त्ति एतत् किल पक्षद्वयं जिनाभिमतमेवानुवादपरतयोक्त्वा द्वितीयपक्षं // 1203||