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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1202 // 16 कतिविहेणं भंते! भावे पण्णत्ते?, गोयमा! छविहे भावे प०, तं०- उदइए उवसमिए जाव सन्निवाइए, 17 से किंतं उदइए?, उदइए भावे दुविहे पण्णत्ते, तंजहा- उदइए उदयनिप्पन्ने य, एवं एएणं अभिलावेणं जहा अणुओगदारे छन्नामं तहेव निरवसेसं भाणियव्वं जाव से तं सन्निवाइए भावे॥सेवं भंते! रत्ति॥सूत्रम् 593 // 17-1 // कतिविहे णं भंते! भावे इत्यादि, औदयिकादीनां च स्वरूपं प्राग् व्याख्यातमेव // 16 // एवं एएणं अभिलावेणं जहा अणुओगदारे इत्यादि, अनेन चेदं सूचितं से किं तं उदइए?, 2 अट्ठ कम्मपगडीणं उदएणं, से तं उदइए' इत्यादीति // 17 // 8593 // सप्तदशशते प्रथमः॥१७-१॥ 17 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 593 शरीरादिभ्यः क्रिया: भावा: उद्देशक: 2 सूत्रम् 594 धर्माधर्मस्थितता ॥सप्तदशशतके द्वितीयोद्देशकः॥ प्रथमोद्देशकान्ते भावा उक्तास्तद्वन्तश्च संयतादयो भवन्तीति द्वितीयेत उच्यन्त इत्येवंसम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रं १से नूणं भंते! संयतविरतपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे धम्मे ठिए अस्संजयअविरयअपडिहयपच्चक्खायपावकम्मे अधम्मे ठिते संजयासंजए धम्माधम्मे ठिते?,हंता गोयमा! संजयविरयजाव धम्माधम्मे ठिए, एएसिणंभंते! धम्मंसिवा अहम्मंसि वा धम्माधम्मंसि वाचक्किया केइ आसइत्तए वा जाव तुयट्टित्तए वा?, गोयमा! णो तिणट्टेसमटे, सेकेणंखाइ अटेणं भंते! एवं वुच्चइ जाव धम्माधम्मे ठिते?, गोयमा! संजयविरयजाव पावकम्मे धम्मे ठिते धम्मं चेव उवसंपज्जित्ताणं विहरति, असंयतजाव पावकम्मे अधम्मे ठिए अधर्म चेव उवसंपज्जित्ताणं विहरइ, संजयासंजए धम्माधम्मे ठिते धम्माधम्मं उवसंपज्जित्ताणं विहरति, से तेणद्वेणं जाव ठिए / / 2 जीवाणं भंते! किंधम्मे ठिया अधम्मे ठिया धम्माधम्मे ठिया?, गोयमा! जीवा धम्मेवि ठिता अधम्मेवि ठिता धम्माधम्मेवि ठिता, 3 // 1202 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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