________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1199 // 17 शतके उद्देशकः१ सूत्रम् 591 तालादिप्रचालनादौ क्रिया: धायकः पञ्चदशः वायु त्ति वायुकुमारवक्तव्यतार्थः षोडश 16 अग्गि त्ति अग्निकुमारवक्तव्यतार्थः सप्तदशः 17 सत्तरसे त्ति सप्तदशशते, एत उद्देशका भवन्ति / तत्र प्रथमोद्देशकार्थप्रतिपादनार्थमाह-रायगिहे इत्यादि॥१॥भूयाणंदे त्ति भूतानन्दाभिधानः कूणिककराजस्य प्रधानहस्ती॥ 4 // // 590 // अनन्तरं भूतानन्दस्योद्वर्त्तनादिका क्रियोक्तेति क्रियाऽधिकारादेवेदमाह ५पुरिसे णं भंते! तालमारुहइ ता०२ तालाओ तालफलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कतिकिरिए?, गोयमा! जावं च णं से पुरिसे तालमारुहइ तालमा०२ तालाओतालफलं पयालेइ वा पवाडेइ वा तावंचणं से पुरिसे काइयाए जाव पंचहिं किरियाहिं पुढे, जेसिंपिय णं जीवाणं सरीरेहिंतो तले निव्वत्तिए तलफले नि० तेऽविणंजीवा काइयाए जाव पंचहिं कि०पुट्ठा॥६ अहे णं भंते! से तालप्फले अप्पणो गरुयत्ताए जाव पच्चोवयमाणे जाई तत्थ पाणाइंजाव जीवियाओववरोवेति तएणंभंते! से पुरिसे कतिकिरिए?, गोयमा! जावंचणं से पुरिसे तलप्फले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेति तावंच णं से पुरिसे का० जाव चउहिं कि० पुट्ठा, जेसिंपिणंजीवाणं सरीरेहिंतो तले निव्वत्तिए तेविणं जीवा का० जाव चउहिं कि० पुट्टे, जेसिंपिणं जीवाणं सरी० तले नि० तेविणं जीवा का० जाव चउहिं कि० पुट्ठा,जेसिंपिणं जी० सरी० तालप्फले नि० तेविणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं कि० पुट्ठा, जेविय से जीवा अहे वीससाए पच्चोवयमाणस्स उवग्गहे वटुंति तेऽवियणं जीवा काइयाए जाव पंचहिं कि० पुट्ठा॥७पुरिसेणं भंते! रुक्खस्स मूलं पचालेमाणे वा पवाडेमाणे वा कति किरिए?, गोयमा! जावंचणं से पुरिसे रुक्खस्स मूलंपचालेमाणेवा पवाडेमाणे वातावंचणं से पुरिसे का० जावपंचहि किरियाहिं पुढे, जेसिंपियणंजीवाणं सरी० मूले नि० जाव बीए नि० तेवियणं जीवा का० जाव पं० कि० पुट्ठा, 8 अहे णं भंते! से मूले अप्पणो गरुयत्ताए जाव जीवियाओ ववरोवेइ तओ णं भंते! से पुरिसे कतिकिरिए?, गोयमा! जावंचणंसे मूले अप्पणोजाव ववरोवेइ तावं चणं से पुरिसे काइयाए जाव चउहि कि० पुढे, जेसिंपिय णंजी०सरी० कंदे // 1199 //