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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1198 // ॥अथ सप्तदशं शतकम् // 17 शतके ॥सप्तदशमशतके प्रथमोद्देशकः॥ उद्देशकः१ सूत्रम् 590 व्याख्यातं षोडशं शतम्, अथ क्रमायातं सप्तदशमारभ्यते, तस्य चादावेवोद्देशकसङ्ग्रहाय गाथा उदायिभू ___ नमो सुयदेवयाए भगवईए। कुंजर १संजय र सेलेसि 3 किरिय 4 ईसाण 5 पुढवि६-७ दग ८-९वाऊ 10-11 / एगिदिय 12 तानन्दौ नाग 13 सुवन्न 14 विजु 15 वायु 16 ऽग्गि 17 सत्तरसे॥१॥१रायगिहे जाव एवं वयासी- उदायी णं भंते! हत्थिराया कओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्नो?,गोयमा! असुरकुमारेहिंतो देवेहितो अणंतरंउव्वट्टित्ता उदायिहत्थिरायत्ताए उववन्ने, 2 उदायी णं भंते! हत्थिराया कालमासे कालं किच्चा कहिंगच्छिहिति कहिं उववजिहिति?, गोयमा! इमीसेणं रयणपभाए पुढवीए उक्कोससागरोवमद्वितीयंसि निरयावासंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति, ३सेणं भंते! तओहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिंग० कहि उ०?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति // 4 भूयाणंदे णं भंते! हत्थिराया कओहिंतो अणंतरं उव्वट्टित्ता भूयाणंदे हत्थिरायत्ताए? एवं जहेव उदायी जाव अंतं काहिति // सूत्रम् 590 // कुंजरे त्यादि, तत्र कुंजर त्ति श्रेणिकसूनोः कूणिकराजस्य सत्क उदायिनामा हस्तिराजस्तत्प्रमुखार्थाभिधायकत्वात् कुञ्जर एव प्रथमोद्देशक उच्यते, एवं सर्वत्र १,संजय त्ति संयताद्यर्थप्रतिपादको द्वितीयः 2 सेलेसि त्ति शैलेश्यादिवक्तव्यतार्थस्तृतीयः 3 किरिय त्ति क्रियाद्यर्थाभिधायकश्चतुर्थः 4 ईसाण त्ति ईशानेन्द्रवक्तव्यतार्थः पञ्चमः 5 पुढवि त्ति पृथिव्यर्थः षष्ठः 6 सप्तमश्च 7 दग त्ति अप्कायार्थोऽष्टमो 8 नवमश्च 9 वाउ त्ति वायुकायार्थो दशम 10 एकादशश्च 11 एगिदिय त्ति एकेन्द्रियस्वरूपार्थो / द्वादशः 12 णाग त्ति नागकुमारवक्तव्यतार्थस्त्रयोदशः 13 सुवन्न त्ति सुवर्णकुमारार्थानुगतश्चतुर्दशः 14 विजुत्ति विद्युत्कुमाराभि
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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