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________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1192 // 16 शतके उद्देशकः८ सूत्रम् 585 वृष्टौहस्ताधाकुचनादिक्रिया: सूत्रम् 586 अलोकेऽना कुञ्चतादिः चरमान्तयोः पञ्चेन्द्रियेषु देशानाश्रित्य भङ्गकत्रयं सम्भवति, ग्रैवेयकेषु विमानेषु तु देवपञ्चेन्द्रियगमागमाभावाद्वीन्द्रियादिष्विव पञ्चेन्द्रियेष्वपि मध्यमभङ्गकरहितं शेषभङ्गकद्वयं तयोर्भवतीति // 5 // // 583 // चरमाधिकारादेवेदमपरमाह परमाण्वि त्यादि, इदं च गमनसामर्थ्यं परमाणोस्तथास्वभावत्वादिति मन्तव्यमिति॥६॥॥५८४॥ अनन्तरं परमाणोः क्रियाविशेष उक्त इति क्रियाधिकारादिदमाह 7 पुरिसे णं भंते! वासं वासति नो वासतीति हत्थं वा पायं वा बाहुं वा उरुंवा आउट्टावेमाणे वा पसारेमाणे वा कतिकिरिए?, गोयमा जावंचणं से पुरिसे वासं वासति वासंनो वासतीति हत्थं वा जाव ऊरुवा आउट्टावेति वा पसारेति वा तावं चणं से पुरिसे काइयाएजाव पंचहि किरियाहिं पुढे ॥सूत्रम् 585 // पुरिसे ण मित्यादि, वासं वासइ वर्षो मेघो वर्षति नो वा वर्षो वर्षतीति ज्ञापनार्थमिति शेषः, अचक्षुरालोके हि वृष्टिराकाशे हस्तादिप्रसारणादेव गम्यत इतिकृत्वा हस्तादिकमाकुण्टयेद्वा प्रसारयेद्वाऽऽदित एवेति / / 7 // // 585 // आकुण्टनादिप्रस्तावादिदमाह 8 देवेणं भंते! महडिए जाव महेसक्खे लोगंते ठिच्चा पभू अलोगंसि हत्थं वा जाव ऊरुं वा आउंटावेत्तए वा पसारेत्तए वा?,णो तिणढे समढे, 9 सेकेणटेणं भंते! एवं वुच्चइ देवे णं महट्टीए जाव लोगते ठिच्चा णो पभू अलोगंसि हत्थं वा जाव पसारेत्तए वा?, जीवाणं आहारोवचिया पोग्गला बोंदिचिया पो० कलेवरचिया पो० पोग्गलामेव पप्प जीवाण य अजीवाण य गतिपरियाए आहिज्जइ, अलोएणं नेवत्थि जीवा नेवत्थि पो० से तेणटेणंजाव पसारेत्तए वा ॥सेवं भंते! रत्ति॥सूत्रम् 586 // 16-8 // देवे णं मित्यादि, जीवाणं आहारोवचिया पोग्गल त्ति जीवानां जीवानुगता इत्यर्थः, आहारोपचिता आहाररूपतयोपचिताः // 1192 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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