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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1187 // |16 शतके उद्देशकः 8 सूत्रम् 583 लोकमहत्ता चरमान्तादौ जीवाजी वदेशादि ॥षोडशशतके अष्टमोद्देशकः॥ सप्तम उपयोग उक्तः, स च लोकविषयोऽपीतिसम्बन्धादष्टमे लोकोऽभिधीयते, तस्य चेदमादिसूत्रं 1 किंमहालए णं भंते! लोए प०?,गोयमा! महतिमहालए जहा बारसमसए तहेव जाव असंखेजाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, 2 लोयस्सणं भंते! पुरच्छिमिल्ले चरिमंते किंजीवा जीवदेसाजीवपएसा अजीवा अजीवदेसा अजीवपएसा?, गोयमा! नो जीवा जीवदेसावि जीवपएसावि अजीवावि अजीवदेसावि अजीवपएसावि // जे जीवदेसा ते नियम एगिंदियदेसा य अहवा ए०देसाय बेइंदियस्सय देसे एवं जहा दसमसए अग्गेयीदिसा तहेव नवरं देसेसु अणिदियाणं आइल्लाविरहिओ।जे अरूवी अजीवा ते छव्विहा, अद्धासमयो नत्थि, सेसं तं चेव सव्वं निरवसेसं / 3 लोगस्स णं भंते! दाहिणिल्ले चरि० किं जीवा०?, एवं चेव, एवं पञ्चच्छिमिल्लेवि, उत्तरिल्लेवि, लोगस्स णं भंते! उवरिल्ले चरिमंते किं जीवा०?, पुच्छा, गोयमा! नो जीवा जीवदेसावि जाव अजीवपएसावि। जे जीवदेसा ते नियम ए देसाय अणिंदियदेसा य अहवाएदेसा य अणिंदिय० बेंदियस्स य देसे, अहवा ए०देसा य अणि०देसा य बेळ्याण य देसा, एवं मज्झिल्लविर० जाव पंचिंदि०, जे जीवप्पएसा ते नियम एप्पएसा य अणि०प्पएसाय, अहवा ए०प्पएसाय अणि प्पएसा य बेंदियस्सप्पदेसाय, अहवाए०पएसाय अणिंदियप्पएसाय बेइंदियाण य पएसा, एवं आदिल्लवि०ओ जाव पंचिंदियाणं, अजीवा जहा दसमसए तमाए तहेव निर० // 4 लोगस्सणं भंते! हेट्ठिल्ले चरि० किं जीवा० पुच्छा?, गोयमा! नो जीवा जीवदेसावि जाव अजीवप्पएसावि, जे जीवदेसा ते नियम ए०देसा, अहवा ए०देसा य बेइंदियस्स देसे, अहवा ए०देसा य बेंदियाण य देसा एवं मज्झिल्लवि० जाव अणिंदियाणं पदेसा आइल्लवि० सव्वेसिं जहा पुरच्छिमिल्ले चरिमंते तहेव, अजीवा जहेव उव० चरिमंते तहेव॥५ इमीसे णं भंते! रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छि० चरि० किं जीवा०? पुच्छा, गोयमा! नो जीवा एवं जहेव // 1187 //
SR No.600445
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size38 MB
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