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________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-२ // 595 // 8 शतके उद्देशकः 2 आशीविषाधिकारः। सूत्रम् 321 10 उपयोग 11 लेश्या 13 कषाय द्वारेषु ज्ञानाज्ञानप्रश्ना : / सासादनभाव आद्यज्ञानद्वयसम्भवः, तदभावे त्वाद्याज्ञानद्वयसम्भवः, केवलिनां त्वेकं केवलज्ञानमिति / जिभिदियेत्यादौ, 89 तस्स अलद्धियत्ति जिह्वालब्धिवर्जिताः, तेच केवलिन एकेन्द्रियाश्चेत्यत आह नाणीवीत्यादि, ये ज्ञानिनस्ते नियमात्केवलज्ञानिनो येऽज्ञानिनस्ते नियमाद्व्यज्ञानिन एकेन्द्रियाणांसासादनभावतोऽपि सम्यग्दर्शनस्याभावाद्विभङ्गाभावाच्चेति / फासिंदिये त्यादि, स्पर्शनेन्द्रियलब्धिकाः केवलवर्जज्ञानचतुष्कवन्तोभजनया तथैवाज्ञानत्रयवन्तोवा, स्पर्शनेन्द्रियालब्धिकास्तु केवलिन एव, इन्द्रियलब्ध्यलब्धिमन्तोऽप्येवंविधा एवेत्यत उक्तं जहा इंदिए इत्यादि // 320 // उपयोगद्वारे 90 सागारोवउत्ताणंभंते! जीवा किंनाणी अन्नाणी?,पंच नाणाई तिन्नि अन्नाणाईभयणाए॥९१ आभिणिबोहियनाणसाकारोवउत्ताणं भंते! चत्तारिणाणाई भयणाए। एवं सुयनाणसागारोवउत्तावि।ओहिनाणसागारोवउत्ता जहा ओहिनाणलद्धिया(७१), मणपज्जवनाणसा० जहा मणपज्जवनाणलद्धिया(७३), केवलनाणसा० जहा केवलनाणल०(७५), मइअन्नाणसागारोवउत्ताणं तिन्नि अन्नाणाई भयणाए, एवं सुयअन्नाणसा०वि, विभंगनाणसा० तिन्नि अन्ना० नियमा॥९२ अणागा० णं भंते! जीवा किं नाणी अ०?, पंच नाणाई तिन्नि अन्ना० भयः / एवं चक्खुदंसणअचक्खुदंसणअणागा.वि, नवरं चत्तारि णा० तिन्नि अन्ना० भय०, 93 ओहिदसणअणागा० पुच्छा, गोयमा! नाणीवि अन्नाणीवि, जे नाणी ते अत्थे तिन्नाणी अत्थेगतिया चउनाणी, जे तिन्नाणी ते आभिणिबोहिय० सुयनाणी ओहि०,जे चउणाणी ते आभिणिबोहिय० जाव मणपज्जव०,जे अन्नाणी ते नियमा तिअ०, तंजहामइअ० सुयअ० विभंग०, केवलदसणअणागा. जहा केवलनाणल०॥ 94 सजोगी णं भंते! जीवा किं नाणी जहा सकाइया (38), एवं मणजोगी वइजोगी कायजोगीवि, अजोगी जहा सिद्धा (30) // 95 सलेस्सा णं भंते! जहा सकाइया (38), 96 कण्हलेस्सा णं भंते! जहा सइंदिया(३५), एवं जाव पम्हलेसा, सुक्कलेसा जहा सलेस्सा(९५), अलेस्सा जहा सिद्धा(३०) // 97 8 // 595 //
SR No.600444
Book TitleVyakhyapragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDivyakirtivijay
PublisherShripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
Publication Year2012
Total Pages574
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size15 MB
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